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________________ 108 18. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार- इस कृति में श्रावकों के आचार-धर्म का वर्णन है । श्रावकाचार 24 परिच्छेदों में विभक्त है, जिसमें आचार शास्त्र पर विस्तृत विवेचन किया गया है। भटटारक सकलकीर्ति स्वयं मुनि भी थे--इसलिये उनसे श्रद्धाल भक्त आचार-धर्म के विषय में विभिन्न प्रश्न प्रस्तुत करते होगे---इसलिये उन सबके समाधान के लिये कवि ने इस ग्रन्थ का निर्माण किया। भाषा एवं शैली की दृष्टि से रचना सुन्दर है । कृति में रचनाकाल एवं रचना स्थान नहीं दिया गया है। 19. पुराणसार संग्रह--- प्रस्तुत पुराण संग्रह में 6 तीर्थ कर के चरित्रों का संग्रह है और ये तीर्थ कर है-आदिनाथ, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर वर्द्धमान । भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से “पुराणसार संग्रह प्रकाशित हो चुका है। प्रत्येक तीर्थ कर का चरित्र अलग-अलग सर्गों में विभक्त है जो निम्न प्रकार है: आदिनाथ चरित्र चन्द्रप्रभ चरित्र शान्तिनाथ चरित्र नेमिनाथ चरित्र पार्श्वनाथ चरित्र महावीर चरित्र 5 सर्ग 1 सर्ग 6 सर्ग 5 सर्ग 5 सर्ग 5 सग 20. व्रतकथा कोष--- व्रतकथा कोष की एक हस्तलिखित प्रति जयपुर के दि. जैन मन्दिर पाटोदी के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। इनमें विभिन्न ब्रतों पर आधारित कथाओं का संग्रह है। ग्रन्थ की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं होने से अभी तक यह निश्चित नहीं हो सका कि भट्टारक सकलकीति ने कितनी व्रत कथायें लिखी थीं। 21. परमात्मराज स्तोत्र-- यह एक लवुस्तोत्र है, जिसमें 16 पद्य है । स्तोत्र सुन्दर एवं भावपूर्ण है। इसका 1 प्रति जयपुर के दि. जैन मन्दिर पाटोदी के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। उक्त संस्कृत कृतियों के अतिरिक्त पञ्चपरमेष्ठिपूजा, अष्टान्हिका पूजा, सोलहकारण पूजा, गणधरवलय पूजा, द्वादशानुप्रेक्षा एवं सारचतुर्विशतिका आदि और कृतियां है जो राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती हैं। 15. भट्टारक ज्ञानभूषण ज्ञानभूषण नाम के भी चार भट्टारक हुए हैं। इसमें सर्व प्रथम भट्टारक सकलकीति की परम्परा में भट्टारक भवनकीर्ति के शिष्य थे। दूसरे ज्ञानभूषण भटारक वीरचन्द्र के शिष्य थे जिनका सम्बन्ध सूरत शाखा के भट्टारक देवेन्द्रकीति की परम्परा से था। ये संवत् 1600 से 1616 तक भटटारक रहे। तीसरे शानभूषण का सम्बन्ध अटेर शाखा से रहा था और इनका समय 17 वीं शताब्दी का माना जाता है और चौथे ज्ञानभूषण नागौर गादी के भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य थे। इनका समय 18 वीं शताब्दो का अन्तिम चरण था। 1. देखिये भट्टारक पट्टावलि शास्त्र भण्डार भ. यशः कीति दि. जैन सरस्वती भवन, ऋषभदेव, (राजस्थान)
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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