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________________ 106 2. उत्तर पुराण --इसमें 23 तीर्थंकरों के जीवन का वर्णन है एवं साथ में चक्रवर्ती बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण प्रादि शलाका-महापुरुषों के जीवन का भी वर्णन है। इसमें 15 अधिकार हैं। उत्तरपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से प्रकाशित हो चुका है । 3. कर्मविपाक --यह कृति संस्कृत गद्य में है । इसमें आठ कर्मों के तथा उनके 148 भेदों का वर्णन है । प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबन्ध, स्थितिबन्ध एवं अनभाग बन्ध की अपेक्षा से कर्मों के बन्ध का वर्णन है । वर्णन सुन्दर एवं बोधगम्य है। यह ग्रन्थ 547 श्लोक संख्या प्रमाण है। रचना अभी तक अप्रकाशित है । 4. तत्वार्थसार दीपक --सकलकीर्ति ने अपनी इस कृति को अध्यात्म महाग्रन्थ कहा है। जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष इन मात तत्वों का वर्णन 12 अध्यायों में निम्न प्रकार विभक्त है:-- प्रथम सात अध्याय तक जीव एवं उसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन है। शेष 8 से 12 वें अध्याय में अजीव, आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष का क्रमशः वर्णन है । ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। 5. धन्यकुमार चरित्र--- यह एक छोटा सा ग्रन्थ है जिसम सेठ धन्यकुमार के पावनजीवन का यशोगान किया गया है । पूरी कथा साथ अधिकारों म समाप्त होती है । धन्यकुमार का जीवन अनेक कौतूहलों एवं विशेषताओं से ओत-प्रोत है। एक बार कथा आरम्भ करने के बाद पूरी पढे बिना उसे छोडने को मन नहीं करता । भाषा सरल एवं सुन्दर है । ___6. नेमिजिन चरित्र--नेमिजिन चरित्र का दूसरा नाम हरिवंश पुराण भी है । नेमिनाथ 22वें तीर्थंकर थे जिन्होंने युग में अवतार लिया था। वे कृष्ण के चचेरे भाई थे। अहिंसा में दृढ विश्वास होने के कारण तोरण-द्वार पर पहुंचकर एक स्थान पर एकत्रित जीवों को वध के लिये लाया हुआ जानकर विवाह के स्थान पर दीक्षा ग्रहण कर ली थी तथा राजुल जैसी अनुपम सुन्दर राजकुमारी को त्यागने में जरा भी विचार नहीं किया था। इस प्रकार इसमें भगवान् नेमिनाथ एवं श्री कृष्ण के जीवन एवं उनके पूर्व-भवों में वर्णन हैं। कृति की भाषा काव्यमय एवं प्रवाहयुक्त है । इसकी संवत् 1571 में लिखित एक प्रति आमेर शास्त्र भंडार जयपुर में संग्रहीत है । 7. मल्लिनाथ चरित्र-- 20 वें तीर्थ कर मल्लिनाथ के जीवन पर यह एक छोटा सा काव्य ग्रन्थ है जिसमें 7 सर्ग है। 8. पाश्वनाथ चरित्र--- इसमें 23 वें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के जीवन का वर्णन है। यह एक 23 सर्ग वाला सुन्दर काव्य है। मंगलाचरण के पश्चात् कुन्दकुन्द, अकलंक, समन्तभद्र, जिनसेन आदि आचार्यों को स्मरण किया गया है । 9. सुदर्शन चरित्र--- इस प्रबन्ध काव्य म सेठ सुदर्शन के जीवन का वर्णन किया गया है, जो आठ परिच्छेदों में पूर्ण होता है। काव्य की भाषा सुन्दर एवं प्रभावयुक्त है। 10. सुकुमाल चरित्र-- यह एक छोटा सा प्रबन्ध काव्य है, जिसमें मुनि सुकुमाल के जीवन का पूर्व-भव सहित वर्णन किया गया है। पूर्व में हुआ बैर-भाव किस प्रकार अगले जीवन में भी चलता रहता है इसका वर्णन इस काव्य में सुन्दर रीति से हुआ है। इसमें
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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