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तत्त्वज्ञान-स्मारिका मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग बन जायगा के समस्त साधनों से वंचित कर दिया, साथ नहीं तो मनुष्यों का उपहास का पात्र बन ही देश की दासता से प्रताड़ित हुई मानसिक जायगा।
दुर्बलता का अनुचित लाभ उठाकर अनेक ज्योतिष खगोल, भूगोल, से लेकर जातक | रहस्यमय ग्रन्थों को कूटनीति द्वारा अपहरण कर प्रश्न, नष्ट जातक, वृष्टि, व्यापार की तेजीमन्दी, इस समृद्ध राष्ट्र को हर तरह से दीन-दरिद्र जमीन संशोधन, यात्रा, वस्तु, आरोग्यता, वैवा- | बना दिया । हिक जीवन में सुखदुःख और आर्थिक प्रगति | परिणाम स्वरूप हम आत्मविस्मृत होकर अवनति आदि अनेक समस्याओं को सुलझाने | परावलम्बी हो गये और अपनी विविध विद्याके लिए बड़ा सहायक और सचोट है। कलाकौशल के साथ साथ इस प्रत्यक्ष ज्योति
ज्योतिष विज्ञान एक अमूल्य दर्पण है। विज्ञान को भी भूल गये । जिसमें भूत, भविष्य और वर्तमान की स्पष्ट छाया । फलतः चन्द्रार्क-साक्षीवाला यह प्रत्यक्ष दिखाई देती है। दिखलानेवाला या फलादेश ज्योतिषशास्त्र मतभेद और विवाद का विषय करनेवाला अनुभवी और शास्त्रीय जानकार होना बन गया जिसका प्रत्यक्ष दर्शन विभिन्न पंचांगों ही चाहिए।
के रूप में होने लगा। अन्यथा इनके अनुशीलन-परिशीलन के | ऐसी परिस्थिति को देखकर अर्वाचीन विना ज्योतिषशास्त्र के रहस्य को न वह साक्षा- | विद्वानों का हृदय भर आया जिनमें पुलकित झा, त्कार कर सकता है न उसके ज्ञान का अन्तर्भेद | लोकमान्य तिलक, अप्पयस्वामी दीक्षित, सुधाकर भी प्राप्त कर सकता है।
द्विवेदी, केतकर, बापुदेव, आप्टे, मालवीयाजी ऐसी अपूर्ण स्थिति में शास्त्रज्ञों का फलादेश प्रभृति मनीषियों का नाम विशेष उल्लेखनीय है । मिथ्या प्रयुक्त ही सिद्ध होगा।
__इन विद्वानोंने शताब्दीयों से दासताग्रस्त ज्योतिषशास्त्र की अन्धकारावस्था अठा- दिङ्मूढ भारतीय मानस को ज्योतिषशास्त्र की रवीं-उन्नीसवीं सदी के मध्यकाल में राजनैतिक | ओर आकर्षित करने की पूर्णरीति से सफल विप्लवों के कारण और छिन्नभिन्नता के | चेष्टा की। और वे बहुत अंशों तक सफल कारण आई।
भी हुए। वह काल ज्ञान-साधना की दृष्टि से अपने प्रचार में विद्वानों ने सद्बध सिद्ध अन्धकाराच्छन्न था ।
| गणित के साथ " ज्योतिषशास्त्र के संहिता होरा कारण यह था कि विजेता विदेशियों ने | प्रभृति अंगों का मूलाधार से परिशुद्ध हुए बिना देश को दासता को जंजीरों से बांध कर विज्ञान | फलनिर्देश उपहास मात्र सिद्ध होगा।
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