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________________ ज्योतिष-विज्ञान ANAK 4 . क ले. पं. गोविंद जीवनंदन झा नर्मदाबाई ब्र० पाठशाला पाटण ( उ. गु.) heartedletestshtreetsettetn amestseedshoose thatthoksatehsheeb shchhtisectsabse hottestedehteenneeta संस्कृत-वाङ्मय-शास्त्र में ज्योतिषशास्त्र | इन सात सदीयों में ज्योतिष के क्षेत्र में को विज्ञान का खजाना माना गया है-जिस में अनेक अन्वेषणात्मक और गवेषणात्मक रचनाओं दो विभाग है । गणित और फलित । की अवतारणा हुई। इन दोनों में फलित विभाग का साहित्य, । सिद्धान्त संहिता और होरा पर हजारों " सागर जितना ही विशाल है " । रहस्यमय ग्रन्थ लिखे गये । ज्योतिषशास्त्र में प्राचीन महर्षियों और ___ जिन में से अधिकांश नष्ट हो गये, और युगद्रष्टा आचार्यों का संशोधनकार्य सराह | कितने विदेशियों के हाथ में चले गये, जो आज नीय है। भी लन्दन के इन्डिया ओफिस, में बर्लिन (जर्मनी) | के पुस्तकालय में इसी तरह इण्डिया और यूरप जैसे कि आर्यभट्ट, वराह-मिहिर, श्रीधर के विशाल पुस्तकालयों में पड़े हैं । स्वामी, केशव, मुंजाल, मकरन्द, भास्कराचार्य भारत के विभिन्न भागों में ग्रह-नक्षत्रों के प्रभृति विद्वानों का नाम उल्लेखनीय है। सूक्ष्म निरीक्षण के लिए वेधशालाओं का निर्माण इन्हीं विद्वानों का तपःपूत-साधनायुक्त | भी हुआ है। जीवन से तथा उन्ही आचार्यों के शिष्य--प्रशिष्यों जिन का अस्तित्व जयपुर-उज्जैन-काशी के द्वारा विकसित यह भारतीय विज्ञानशास्त्र । -दिल्ही-अहमदाबाद आदि स्थानों में देखने मनुष्यों के जीवन से इतना गहरा संबन्ध रखता | में आता है। है कि-जब समुदाय के जीवन की यात्रा में ज्योतिष विज्ञान हरेक इन्सान के जीवन क्रान्तिकारी फलों का समर्थन कर मानवजीवन | के साथ इतना ओतप्रोत और संलग्न है कि के विकास में ज्योतिषशास्त्र युगादिसे सहायक | विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश के लिए ज्योतिष विज्ञान बनता आ रहा है। | महान् मार्गदर्शक सिद्ध होता आ रहा है। पांचवीं शताब्दी से वराह-मिहिर और । जिसके अनुसन्धान में गणित, संहिता, बारहवीं शताब्दी के समय तक भास्कराचार्यने । ज्योतिष, होरा प्रभृति द्वारा जातक के लिए ज्योतिषशास्त्र के लिए सुवर्णयुग बना दिया। 'फलादेश किया जाय तो ज्योतिष विज्ञान हर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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