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(१) विधिरूप और निषेधरूप इन्हीं दोनों विरोधी धर्मों को स्वीकार करने में ही स्यादवाद के भंगों का उत्थान है ।
तत्त्वज्ञान स्मारिका
(२) दो विरोधी धर्मों के आधार पर विवक्षा- भेद से शेष भंगों की रचना होती है । (३) मौलिक दो भंगों के लिये और शेष सभी अंगों के लिये अपेक्षा कारण अवश्य चाहिये । प्रत्येक भंग के लिये स्वतन्त्र दृष्टि या अपेक्षा का होना आवश्यक है। प्रत्येक भंग को स्वीकार क्यों किया जाता है, इस प्रश्न का स्पष्टीकरण जिससे हो वह अपेक्षा है, आदेश है या दृष्टि है या नय है |
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( ४ ) इन्हीं अपेक्षाओं को सूचन करने के लिए, प्रत्येक मंगवाक्य में " स्यात् " ऐसा पद रखा जाता है । इसी से यह वाद " स्यादवाद' कहलाता है, इस और अन्य सूत्र के आधार से इतना निश्चित है कि जिस वाक्य में साक्षात् अपेक्षा का उपादन हो वहाँ " स्यात् " का प्रयोग किया नहीं गया और जहाँ अपेक्षा का साक्षात् उपादान नहीं है, वहाँ स्यात् का प्रयोग किया गया है, अतएव अपेक्षा का द्योतन करने के लिए " स्यात् " पद का प्रयोग करना चाहिए ।
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धर्मयुगलों को लेकर सात ही भंग होने चाहिएन कम ! अधिक ! इस प्रकार जो जैन दर्शनिकों
व्यवस्था की है, वह निर्मूल नहीं है । क्योंकि त्रिप्रदेशिक स्कंध और उससे अधिक प्रदेशिक स्कंधो के भंगो की संख्या जो प्रस्तुत सूत्र में दी गई है उससे यही मालूम होता है कि मूल भंग सात ही हैं जो जैन दार्शनिकों ने अपने सप्तभंगी के विवेचन में स्वीकृत किये हैं । जो अधिक भंग संख्या सूत्र में निर्दिष्ट है वह मौलिक भंगों के भेद के कारण नहीं है किन्तु एकवचन - बहुवचन भेद की विवक्षा के कारण ही है । यदि वचनभेदकृत संख्यावृद्धि को निकाल दिया जाय तो मौलिक भंग सात ही रह जाते हैं । अतएव जो यह कहा जाता है कि आगम में सप्तभंगी नहीं है, वह भ्रममूलक है ।
(७) सकला देश - विकलादेश की कल्पना भी आगमिक - सप्तभंगी में विद्यमान है । आगम के अनुसार प्रथम तीन भंग सकलादेशी है और शेष चार भंग विकलादेशी है ।
भंग - कथन-पद्धति
शब्दशास्त्र की दृष्टि से प्रत्येक शब्द के मुख्य रूप से विधि और निषेध ये दो वाच्य होते हैं । प्रत्येक विधि के साथ निषेध और ( ५ ) " अवक्तव्य " यह भंग तीसरा है । प्रत्येक निषेध के साथ विधि जुडी रहती है । कुछ जैन दार्शनिकों ने इस भंग को चोथा स्थान एकांत रूप से न कोई विधि संभव है और न दिया है | आगम में अवक्तव्य का चोथा स्थान कोई निषेध ही । इकरार के साथ इनकार और नहीं है । यह विचारणीय है कि अवक्तव्य को इनकार के साथ इकरार रहा हुआ है । विधि चौथा स्थान कब से, किसने और क्यों दिया । और निषेध को लेकर जो सप्तभंगी बनती है। सभी विरोधी | वह इस प्रकार है
(६) स्यादवाद के भंगों में
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