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________________ ६४ ] तवज्ञान - स्मारिका (१२) एक देश आदिष्ट है असदभाव - | चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा है, (दो) नहीं है और अवक्तव्य है । पर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है । (१३) एक देश आदिष्ट है असद्भाव पर्यायों से और अनेक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतएव चतुष्पदेशी स्कंध आत्मा नहीं है और (अनेक) अवक्तव्य हैं । (१४) अनेक देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कंध (अनेक ) आत्माएँ नहीं है और अवक्तव्य है । (१५) दो देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और दो देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कंध (दो) आत्माएँ नहीं है और (दो) अवक्तव्य है । (१६) एक देश सद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भाव–पर्यायों से आदिष्ट है, और एक देश तदुभय-पर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा है, नहीं है और अवक्तव्य है । (१७) एक देश सद्भाव-पर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भाव–पर्यायों से आदिष्ट है और दो देश तदुभय-पर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा है, नहीं है और (दो) अवक्तव्य है । (१८) एक देश सद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है, दो देश असद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है और एक देश तदुभय-पर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए Jain Education International (१९) दो देश सद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भाव-पर्यायों से आदिष्ट है और एक देश तदुभय-पर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कंध (दो) आत्माएँ है, नहीं है और अवक्तव्य है । इसके पश्चात् पंच- प्रादेशिक स्कंध के संबंध में वे ही प्रश्न हैं, और भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं के साथ श्री भगवान २२ भंगों में उत्तर प्रदान करते हैं (१) पंच प्रदेशी स्कंध आत्मा के आदेश से आत्मा है | (२) पंच प्रदेशी स्कंध पर के आदेश से आत्मा नहीं है । (३) पंच प्रदेशी स्कंध तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है । (४), (५), (६) ये तीन भंग चतुष्प्रदेशी स्कंध के समान है । (७) दो या तीन देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और दो या तीन देश आदिष्ट है असद्भाव - पर्यायों से अतएव पंच- प्रदेशी स्कंध (दो या तीन ) आत्माएँ हैं और ( दो या तीन ) आत्माएँ नहीं है । [सद्भाव - पर्यायों में यदि दो देश लेने हों तो असद्भाव-पर्यायों में तीन देश लेने चाहिए और सद्भाव - पर्यायों में यदि तीन देश लेने हों तो असद्भाव - पर्यायों में दो देश लेने चाहिए ।] (८, ९, १० ) ये तीन भंग चतुष्प्रदेशी स्कंध के समान है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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