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सप्तभंगी : स्वरूप और दर्शन स्याद्वाद के भंगों का आगमकालीन रूप
आगम साहित्य में जिस प्रकार म्याद्वाद का रूप बताया गया है उसी का हम यहाँ निरूपण करेंगे, जिससे यह ज्ञात हो सके कि सप्तभंगी का रूप नूतन नहीं है, किन्तु आगम साहित्य में उस पर चर्चा की गई है । बाद के आचार्यों ने उन्हीं भंगों का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण किया है ।
श्री गौतम ने प्रश्न किया- भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी आत्मा है या अन्य है ?
उत्तर में भगवान ने कहा
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(१) रत्नप्रभा पृथ्वी स्यात् आत्मा है । (२) रत्नप्रभा पृथ्वी स्यात् आत्मा नहीं है । (३) रत्नप्रभा पृथ्वी स्यात् अवक्तव्य है इन तीनों भंगों को सुनकर गौतम ने भगवान से पुनः प्रश्न किया कि आप एक ही पृथ्वी को इतने प्रकार से किस अपेक्षा से कहते हैं ?
उत्तर में भगवान ने कहा-
(१) आत्मा के आदेश से आत्मा है । (२) पर के आदेश से आत्मा नहीं है । (३) उभय के आदेश से अवक्तव्य है । श्रीगौतम ने रत्नप्रभा की भांति अन्य पृथ्वियों, देवलोक और सिद्धशिला के सम्बन्ध में पूछा है, और उत्तर भी उसी प्रकार प्राप्त हुआ । उसके बाद परमाणु के सम्बन्ध में भी पूछा, पूर्ववत् ही उत्तर मिला । किन्तु जब उन्होंने द्विप्रदेशिक स्कंध के विषय में पूछा, तब प्रभु महावीर ने उत्तर इस प्रकार दिया, जिसमें भंगों का आधिक्य है
८ भगवती शतक १२, उ०१०
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(१) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है । (२) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा नहीं है । (३) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् अवक्तव्य है । (४) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है और आत्मा नहीं हैं ।
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(५) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य है ।
(६) द्विप्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा नहीं है। और अवक्तव्य है ।
इन भंगो की योजना के अपेक्षा कारण के संबंध में श्री गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु महावीर ने कहा
(१) द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा के आदेश से आत्मा है।
(२) पर के आदेश से आत्मा नहीं है । (३) उभय के आदेश से अवक्तव्य I
(४) एकदेश सद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा अंश असद्भाव-पर्यायों से आदिष्ट है, अतः द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा है और आत्मा नहीं है।
(५) एकदेश सद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है और एकदेश उभय-पर्यायों से आदिष्ट है, अतएव द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य है ।
(६) एकदेश असद्भाव - पर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा देश तदुभय-पर्यायों से आदिष्ट है । अतः द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है ।
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