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________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [१जीव - असख्य - - २२७ १०५२ असंख्य ____ असंख्य वर्ग जाइये तब लोकाकाश प्रदेश आवै " , , , तेउकायके सर्व जीव राशि , ,, , तेउकायकी कायस्थिति समय १ विरिया वर्ग कीने तब परम अवधिज्ञानका क्षेत्र आवै असंख्य वर्ग जाइये तब स्थितिबंधके अध्यवसाय " ,, ,, अनुभागबंधके , _,,, , निगोदके शरीर औदारिक ,,, , निगोदकी कायस्थिति दोहा-च्यारि ४ आठ ८ ओ पांचसे, बारह ५१२ आदि कहंत । धारा तीनो जाणिये, आगे वर्ग अनंत ॥१॥ चौपइ-कृत धारामे वर्ग विचार, ताके घन लइये धनधार । घनाधन धारामे तस बंद, इम भाषे सवही जिनचंद ॥१॥ दोइ २ तीन ३ अरु नौ ९ है छेद, आदि तिहुं धारा इम भेद । आगे दुगुण दुगुण सब ठाम, वरग कृति घन वृन्दो नाम ॥२॥ दने कृतिमे तिगुने घणा, नौ गुण छेद घनाधन तणा। इक इक धारा तीन प्रकार, गुण १पुनि भाग २ अयसि ३ निहार ॥३॥ छेद जोग है इस गुणकार, तस विजोग है भागाहार । निजसम थल थापीजे रास, अन्नो अनताको अभ्यास ॥४॥ दोहा-पहिले विरलन देय पुनि, तासौ है उत्पन्न । विरलन जाहि विषे(ख)रीये, देय उपरजो दिन ॥ चौपइ-विरलन राशि करो गुणाकार, देय छेद सौ बुद्धिविचार। जो आवे सो छेद प्रमाण, उत्पन्न राशि इह विद्यमान ॥१॥ विरलन राशि स्थापना-४।१११ १. देय राशि स्थापना-४ ४ ४ ४ देय राशिक छेद २ सें देय राशिकू गुण्या लब्ध ८ छेद. इतने उत्पन्न राशिके २५६ छेद होय. दोहा-अर्ध अर्ध जो छेदको, कीजे सो कृति रास । अपने छेद समान ही, वर्ग होय अभ्यास ॥१॥ राशि १६, छेद ४. चौथे ठिकाणे उत्पन्न राशि १८४४७४४०७३७०९५५१६१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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