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________________ तत्व नवतत्त्वसंग्रह असंख्याते असंख्यात अनंत असंख्य वर्ग जाइये तब जघन्य युक्त अनंत आवे अनंत वर्ग जाइये तब जघन्य अनंत अनंते आवे अनंत वर्ग जाइये तब जीवास्तिकाय अनंते वर्ग जाइये तब पुद्गलास्तिकाय ___ अनंते वर्ग जाइये तब अद्धा-काल अनंते वर्ग जाइये तब सर्व आकाश श्रेणिके प्रदेश १ विरिया वर्ग कीजे तब सर्व आकाश प्रतरके प्रदेश अनंते वर्ग जाइये तब धर्मास्तिकायके पर्याय __ अनंत वर्ग जाइये तव १ जीवके पर्याय अनंते वर्ग जाइये तब जघन्य अज्ञानके पर्याय अनंत वर्ग जाइये तब क्षायिक सम्यक्त्वके पर्याय वर्ग अनंते जाइये तब केवलज्ञान(के) पर्याय बगेशलाका घनधारा - ८ दशलाका ६४ १२ २४ ४०९६ १६७७७२१६ २८१४७४९७६७१०६५६ ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ गर्भज मनुष्य ५८ अंक ११६ अंक ___ असंख्य वर्ग जाइये तब घनांगुलके प्रदेश आवै असंख्य वर्ग जाइये तब लोकाकाश श्रेणिके प्रदेश आवै १ विरिया वर्ग कीजे तब लोकाकाश प्रतर प्रदेश आवै घनाघन धारा ८ असंख्य असंख्य वगेशलाका छेदशलाका MINI २६२१४४ ६८७१९४७६१३६ २२ अंक ७२ ४१॥ २८८ ५७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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