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[१ जीव
श्रीविजयानंदसूरिकृत (६४) वर्गके छेदांका स्वरूप निरूपक यंत्रम्
प्रथम
दूजा
तीजा
वर्ग अंक
२५६
स्थापना
स्थापना
स्थापना
स्थापना ८,४,२
१२८,६४,३२,१६,८,४,२
अथ लोकोत्तर गिणती लिख्यतेचौपाइ-लोकोत्तर गिणती सिद्धांत, जासौ संख असंख अनंत ।
ताके भेद दोइ मन मानि, छेद गिणतओ वरग प्रमानि ॥१॥ छेद राशिका आधा आधा, जब लग अंतमे एक ही लाधा।
राशिकू आपही सौ गुणाकार, 'वरग' कहे इह बुद्धिविचार ॥२॥ दोहा-धारा तीन ही जानीये, वरगधार घनधार ।
होइ घनघनाधार इम, पंडित कहे विचार ॥ १॥ (६५) अथ इन तीनो धारका जो प्रयोजन है सो यंत्रं गोमट्ट(म्मट)सारात् वर्गशलाका वर्गधारा
छेदशलाका
१६
३२
६४
१२८
२५६
संख्याते
६५५३६ ४२९४९६७२९६ १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६
३९ अंक आवै
७८ , , संख्याते संख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य परित्त असंख्याते आवै
संख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य युक्त असंख्याते आवै असंख्याते | असंख्याते वर्ग जाइये तब जघन्य असंख्य असंख्याते आवै ।
असंख्याते वर्ग जाइये तब सूक्ष्म अद्धापल्योपमके समय होय
असंख्य वर्ग जाइये तब सूची अंगुलके प्रदेश १ विरीया वर्ग कीजे तब प्रतर अंगुलके प्रदेश
असंख्य वर्ग जाइये तब जघन्य परित्त अनंत होय ..१वार।
असंख्याते
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