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तत्व]
नवतत्त्वसंग्रह वर्ग करी पीछे ए छ बोल अनंता प्रक्षेपीये. तद्यथा-(१) सर्व सिद्ध, (२) सर्व सूक्ष्म बादर निगोदना जीव, (३) सर्व वनस्पतिना जीव, (४) तीनो कालके समय, (५) सर्व पुद्गल, (६) सर्व लोकालोकाकाश प्रदेश. एवं बोल छ प्रक्षेपी सर्व राशिकू त्रिवर्ग करीये. जो राशि हुई तो पिण उत्कृष्ट अनंत अनंता न हूवे. तिवारे पछी केवलज्ञान दर्शनना पर्याय प्रक्षेपीये. इम कर्या उत्कृष्ट अनंत अनंता नीपजे. इस उपरांत और वस्तु नही. एणी परे एकेक आचार्यना मतने विषे कह्या. अने श्रीसूत्रना अभिप्रायथी जो उत्कृष्ट अनंत अनंता नही. तत्व केवली जाणे. इति अनुयोगद्वार(स. १४६)वृत्तिवाक्यप्रमाणात् अत्र लिखिता असाभिः ।
(६२) मध्यम अनंत अनंतेमे जो जो पदार्थ है तिनका यंत्रम
सम्यक्त्वके प्रतिपातिसे लगायके सर्व जीव तथा दोप्रदेशी स्कंधसे लेकर सर्व पुद्गल मध्यम अनंत अनंतेमे जानने.
आहारक शरीरके विखरे थके जितने स्कंध होय तिनकू 'मुक्केलगा' कहीये. सो अनंत क्षेत्रथी २ स्कंध है. तिणोने जितना क्षेत्र स्पर्शा तिससु लगायके सर्व आकाशके प्रदेश ए सर्व
मध्यम अनंत अनंते जानने. कालथी ३, अर्ध पुद्गलपरावर्तथी लगायके तीनो कालके समय ए सर्व मध्यम अनंत अनंते जानने. भावथी ४
| सूक्ष्म अपर्याप्त निगोद जीवके जघन्य अज्ञानके पर्याय तिणसे लगायके केवलज्ञानके
पर्याय ए सर्व मध्यम अनंत अनंते जानने. अथ जंबूद्वीपके उपरि सरसूं शिखा चढे तिसकी आम्नाय लिख्यते गोम(म्मट)सारात् दोहा-धान तीन है सुकओ, बादरनीका जोइ ।
नौ ९ दस १० ग्यारह ११ भाग, इह जो परिधिका होइ ॥१॥ वेधक कहीये पुंजको, तासो करि गुणकार। परिधि छठे भाग कृति, धन फल कयौ निहार ॥२॥
(६३) स्वरूपयंत्रं सुक धान गेहु आदि बादर धान चणा आदि नीका धान सरसो आदि
वेध १
वेध १
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परिधि९
परिधि १० ए घन फल ए घनफल १३ ए घनफल १ अनुयोगद्वारनी वृत्तिना वाक्यना आधारे अहीं अमे लखेल छ। २ गोम्मटसार नामना दिगंबरीय ग्रंथमाथी ।
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