________________
श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीव
आयु बांधे
सम्यक्त्वे १ वाद मिश्रे २वाद मिथ्यात्वे ३ वाद औधिके ४ वाद
सम्यग्दृष्टि १ चैमानिक 34 शानी २ मति सम्यग्-कृष्णपक्षी आदि ए २७ माहिथी कृष्ण आदि ३ शानादि ३, मिथ्यादृष्टि उपरला छ बोल
| लेश्या नपुंसकवेद् ४, ५४ वरजी एवं बोल ५.
शेष २३
ए २७ माहिथी कृष्ण आदि ३ लेश्या जोतिष |३३
| पद्म ४ शुक्ल लेश्या ५ नपुंसकवेद
६, ए ६ वरजी शेष २१ वाद ।
एक क्रियावादी अज्ञानवादी अक्रिया १ अज्ञान क्रिया १ अक्रिया २ अज्ञान ३
। लामे १ विनयवादी २ विनय ३ वाद विनयवादी ४ आयुबंध | मनुष्य तिर्यंच | आयु नही | मनुष्य तिर्यंच | क्रियावादी मनुष्य तिर्यंच कृष्ण
क्रियावादी आयु | बांधे | आयु चारों आदि तीन ३संक्लिष्ट लेश्यामे आयु बांधे एक वैमानिकना
गतिका बांधे; न बांधेः शेष बोलमे वर्तता आयु नव मनुष्यमे अलेशी
देवता, नारकी बांधे. वैमानिकना शेष ३ समव१ केवली २ अवेदी
मनुष्य तिर्यंचना सरण च्यारों गतिका देवता नारकी
क्रियावादी मनुष्य-आयु बांधे; शेष ३ अकषायी ४
समवसरण मनुष्य तिर्यंचना एकेंद्री अयोगी ५एवं पांच
विकलेंद्रीमे समवसरण २ अक्रिया बोलमे आयु न बांधे
| १ अशान २ विकलेंद्रीमे सज्ञानी देव नारकी क्रिया
मति श्रुतज्ञानी आयु न बांधे. अनेरो वादी आयु बांधे
एकेंद्रीमे तेजोलेश्यामे आयु न बांधे, मनुष्यना
| शेष बोलमे आयु बांधे मनुष्य, तिर्यंचना; तेउ, वायु, तिर्यंचना आयु यांधे ॥ क्रियावादी १ मिश्रदृष्टी २ शुक्लपक्षी ३ ए निश्चय भव्य, शेषमे भजना । इति प्रथमोद्देशकः अनतरोव० १ अनंतो गाढा २ अनतरो
आहार ३ अनंतर पजत्तगा ४. एहमे आयु २४ दंडके न बांधे. बोल जौनसे नही पावे अलेश्यादि १२ सो जान लेने और सर्व प्रथम उद्देशवत्.
अचरममे अलेशी १ केवली २ अयोगी नही और सर्व उद्देशाप्रथमवत् क्षेयं. द्वारगाथा-"जीवा १ य लेस्स२पक्खिय ३दिट्टी४ अन्नाण५ नाण ६ सन्नाओ७।
वेय ८ कसाए ९ उवओग १० जोग ११ एक्कारस वि ठाणा ॥"
(भग० सू०८१०)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org