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________________ नवतत्त्वसंग्रह 82 अपढम अपढम पढम पढम पढम पढमा अप अपढम ढम अपढम पढम अपढम द्विानाम् पढम | पढम पढम . जिसकूँ एक समय उपज्या हूया है सो 'अप्रदेशी' जानना अने जिसकू द्वि आदि समय वंत पर्यंत हुये है सो 'सप्रदेशी' जानना. इन चारो यंत्रोमे जिस दंडकमे जो बोल है तिसकी पेक्षा जानना अपनी विचारसें. अथ प्रथम अप्रथमका लक्षण-जिसने जो भाव पहिले पाम्या ''प्रथम' जिसने द्वि आदि वार पाम्या सो 'अप्रथम'. अथ चरमअचरम लक्षण गाथा__ "जो जं पावहिति पुणो भावं सो तेण अचरिमे होइ (अचरिमो होति?)। अचंतविओगो जस्स जेण भावेण सो चरिमो ॥" 'जीवाहारग १-२ भव ३ सण्णी ४ लेसा ५ दिहि ६ य संजय ७ कसाए ८ । णाणे ९जोगुवओगे १०-११ वेए १२ य सरीर १३ पजत्ती १४॥" ए मूल गाथा (पृ०७३३)। (३१) भगवती श० २६, उ० १ (सू० ८२४) सम्यत्तवे १ वाद मिश्रे२वाद मिथ्यात्वे ३ वाद ओधिके ४ वाद अलेशी १ सम्यग्दृष्टि २ समुच्चयज्ञानी३ कृष्णपक्षी १ सलेशी प्रमुख ७ शुक्लपक्षी ८ संज्ञा यावत् केवलज्ञानी सम्यग्- | | मिथ्यादृष्टि २ ४.१२ सवेदी १३ क्रोधादि स्त्री पुरुष मनुष्य २ अशानी ३ मति- नपुंसक १६ सकषायी प्रमुख पांच । नासशापयुक्त. मिथ्यादृष्टि श्रत अन्नानी ४-५/२२ उपयोग दो २३ सयोगी प्रमख र ४६ अवेदी १० अकषायी ११ अयोगी १२ विभंगशानी ६ ४, एवं सर्व बोल २७ हुये. सम्यग्दृष्टि १ पंचेन्द्री.ज्ञानी२ मति कृष्णपक्षी आदि सलेशी प्रमुख उपरला २७ तिर्यंच | ज्ञानादि ३. " उपरला ६ बोल बोल जानना एवं बोल ५. भवनपति ए २७ माहिथी पद्म १ शुक्ल २ . व्यंतर लेश्या नपुंसकवेद ३, ए ३ वरजीने शेष बोल २४ तेजो १ पद्म २ शुक्ल ३ स्त्रीवेद १ पुरुषवेद २, ए ५ वरजी शेष बोल बावीस २२ जीव नरक - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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