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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीब(२९) चरम अचरम यंत्र भगवती श०१८, उ०१, सू० ६१६ १ | आहार २ संशी ७ असंही ८ | अणा- | भ | अ | नोभव- नोसन्नी| अकजसलेशी १० यावत् शुक्ल लेशी १६ हारी ३ वम सिद्धिक ६ (नोसंक्षी) पायी मिथ्यादृष्टि १९ मिश्रदृष्टि २० सम्य
| नोअ-
व | नोअभवसंयत २१ असंयत २२ संयता दृष्टि १८
३० संयत-श्रावक २३ सकषायि २५/ सज्ञानी
सिद्धिक ६ यावत् लोभकषायि २९ मति: ३१
| नोसंयत अलेशी शानी ३२ यावत् मनःपर्यवशानी साकारो ४
नोअसंयत | ३५ अज्ञानी ४० सयोगी ४१ ।।
नोसंयतायावत् कायायोगी४४ सवेदी ४८ पयुक्त
संयत यावत् नपुंसकवेदी ५१ सशरीरी ४६ अना
अशरीरी ५३यावत्कार्मणशरीरी ५८पांच कारोपपर्याप्ती ६४ पांच अपर्याप्ती ६९ युक्त ४७
संशी अवेदी
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५२
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कवलज्ञानी
|अयोगी
जीवानाम्
चरम
चरम अचरम
अचरम
अचरम | अचरम अवरम
जारमा
रम
चरम अच
चरम दंडके
अचरमा
अचरम सिद्धा-अचनाम् रम
अचरम ० ० | अचरम | अचरम अचरम (३०) पढम अपढम यंत्रम् भगवती श. १८, उ. १, सू० ६१६ भा | आहारक २ भव्य २४ अणाहारी ३/ सम्यग नोभव- नोसंही अ. | मिश्रदृष्टि व अभव्य ५ संज्ञी ७ असं-साकारोप-वधि १८सिद्धिया नोअ
२० १ज्ञी ८ सलेशी १० यावत् ।
संयत शुक्ललेशी १६ मिथ्यादृष्टि युक्त ४६ सज्ञानी (क) नो संज्ञी | षा१९ असंयत २२ सकषायी अनाकारो- २३ अभव- ९ संयता. २४ यावत् लोभकषायी पयुक्त ४७
सिद्धिक अलेशी
संयत २१ अज्ञानी ३७ यावत् |
नोसंयत १७
२३ विभंगज्ञानी ४० सयोगी
मतिज्ञान
नोअसं- केवल४१ यावत् कायायोगी
यत ज्ञानी । ४४ सवेदी ४८ यावत्
यावत् नपुंसकवेदी ५१ सशरीरी
नोसं. ३६ मनःपर्यवः ५३ औदारिक ५४ वैक्रिय
यतासं. अयोगी
ज्ञानी ५५ तैजस आहारक
यत २४, ४५
आहारक ५६ ५७ कार्मण ५८
अशरीरी
शरीर पांच पर्याप्ती ६४ पांच
अपर्याप्ती ६९
४६
- १ आनुं लक्षण भगवती (सू. ६१६)नी निम्नलिखित गाथामां नजरे पडे छे:
"जो जेण पत्तपुव्वो भावो सो तेण अपढमो होइ । सेसेसु होह पढमो अपत्तपुवेसु भावेसु ॥"
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