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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवकृष्ण लेश्या । नील लेश्या कापोत लेश्या तेजोलेश्या पद्म-शुक्ललेश्या
नाम
असंख्यातमा भाग मना असंख्यातमा उत्कृष्ट ३ अधिक उत्कृष्ट ३३ भाय अधिक | सागरोपम सागरोपम उत्कृष्ट १० सागरोपम पल्योपमना
| पल्योपमना असंख्यातमा
असंख्यातमा भाग अधिक भाग अधिक जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त →एवम् एवम्
साय
तिर्यंच
एवम्
एवम् ->एवम्
जघन्य
मनुष्य
एवम्, केपली अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देश ऊन पूर्व
कोटि
भवनपत्ति ज० दश हजार ज० कृष्णकी ज नीलकी ज० दश व्यस्तर वर्ष, उ० पल्योपममा उत्कृष्टसे १ समय उत्कृष्टसे १ हजार वर्ष, असंख्यातमे भाग अधिक समय अधिक उ०१
पल्योपमनाउ०पल्योप- सागरोपम असंख्यातमे मना असंख्या- झंझेरी अने भाग तमे भाग
| व्यंतरकी स्वयं ऊह्यम् ज० पल्यो
पमना ८ जोतिषी
भाग; उ० १ पल लक्ष वर्ष अधिक
ज०
ज०१०
तेजोकी सागरोपम
उत्कृष्टी १समय
वैमानिक
पल्योपमः
उ०२ सागरोपम झझेरी
से समय समय अधिक अधिक: उ०३३ उ०१०
सागरो- सामरोपम
पम् अंत मुहूर्त अधिक
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