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________________ तत्त्वे नवतत्त्वसंग्रह दान्त | त्मा ६ पठन समिता ११ का सामा०० कोने उपशम तथा वीत. नाम । कृष्ण लेश्या । नील लेश्या कापोत लेश्या तेजोलेश्या पद्म- शुक्ललेश्या १ २ ३ ४ लेश्या ५, ६ पिण सर्वकू अहितकारी १ अहीकाता (?) आच्छादक ५/विनय करे | प्रशांत प्रशांत देवता साहसिक अनविचारें, समाचार विषये कपटसें प्रवर्ते ६ देमतेंद्री चित्त ५ चित्त ५ आदिके कार्यकारी १ जीव-| निर्लज १६ मिथ्यादृष्टि ७ शास्त्र | दमितासाथ | हिंसा करता शंके विषयका लांपट्य ७ अनार्य ८ पढीने उप- शुभ | आत्मा ६ व्यभि- नही १ वा इसलोक १ द्वेषी १ शठ १ उत्प्राशक ९ धान तप- योगवान् पांच चार परलोकीना कष्टनी जात्यादि मवान् आग लोक वान् ८ प्रिय ७ शास्त्र समिति नही. शंका नही ते निद्धंस-१ रस लोलुप | लक आदिमे धर्मी ९ दृढ विशिष्ट परिणामी कहिये १ १ सातागवेषी । फसे ऐसे धर्मी १० उपधान तीन गुप्ते उत्कट अजितेंद्रिय १ सूग १ आरंभीसें | बोले ९ दुष्ट पापसे डरे तपवान् गुप्ता १४ रहित १ एवं २१ । अवरति १ वचन बोले १०/११ मोक्षा-८ अल्प- सराग १५ भाषी ९ अथवा बोल क्षुद्रिक १ अन- चौर ११ भिलाषी १२ भार अशुद्ध. विचारे कार्यना मत्सरी पर- शुभ योग- वान् १० राग १६ कारणहार ते संपद असहन वान् एवं जितेंद्रिय उपशांतसाहसिक १ - १२ द्रव्यके | तेजो ना ११५ वान् १७ लक्षण सहचर करके परिणाम | पाले जितेन्द्रिय तिसके उरंगते अर्थात् | श्याना १८ एतदपि तद्रूप होना सोलक्षण जान धणी अनगारप्र(परिणाम लेना अनागा- | स्येति कहिये सर्वत्र अनगारस्य एतत् लक्षणम् सम्भवति, नान्य स्थति स्थान स्थान असंख्य प्रकर्ष कितने ? जितने अपकर्ष रूप असंख्य उत्सर्पिणी अशुभना अवसर्पिणीनासमय अशुभ तुल्य.क्षेत्रतः असंख्य शुभना लोकके प्रदेश नमःशुभ ८ प्रदेश तुल्य । - स्थिति | जघन्य १० सागरो- जघन्य ३ साग- जघन्य १ नारकीनी पम पल्योपमका रोपम पल्योप- | सहस्रवर्ष १ इन्द्रियना उपर काबू राखनार । २ साधुनु आ। ३ साधुमां आ संभवे छे, नहि के अन्यने विषे। ४ आ पण साधुनुं लक्षण छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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