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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह २३१ (१७१) अथ जघन्यरसबन्धयन्त्रम् प्रकृति बन्धखामि स्त्यानर्द्धि १, प्रचला १, निद्रानिद्रा १, अनंतानुबंधि ४, मिथ्यात्व १. संयम सन्मुख मिथ्यात्वी अप्रत्याख्यान ४ अविरतिसम्यग्दृष्टि संयम सन्मुख प्रत्याख्यान४ देशविरति अरति १, शोक १ प्रमत्त यति आहारकद्विक २ अप्रमत्त , निद्रा १, प्रचला १, शुभ वर्णचतुष्क ४, हास्य १, रति १, कुत्सा (?) १, भय १, उपघात १ अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती पुरुषवेद १, संज्वलनचतुष्क ४ नवमे गुणस्थानवाला अंतराय ५, ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४ १० मे गुणस्थाने क्षपक सूक्ष्मत्रिक ३, विकलत्रिक ३, आयु४, वैक्रियकषट्६ ___ मनुष्य, तिर्यच उद्योत १, आतप १, औदारिकद्विक २ देवता, नारकी तिर्यंच गति १, तिर्यंचानुपूर्वी १, नीच गोत्र १ सातमी नरके उपशमसम्यक्त्वके सन्मुख जिननाम १ अविरतिसम्यग्दृष्टि एकेंद्री १, थावर १ नरक विना तीन गतिना आतप १ सौधर्म लगे देवता साता १, असाता १, स्थिर १, अस्थिर १, समदृष्टि वा मिथ्यादृष्टि परावर्त्तमान मध्यम शुभ १, अशुभ १, यश १, अयश १ परिणाम प्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, अशुभ वर्ण आदि चतुष्क ४, तैजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १, निर्माण १, मनुष्यगति १, मनुष्यानुपूर्वी १, शुभ विहायगति १, अशुभविहायगति १, पंचेंद्री १, चार गतिका मिथ्यात्वी बांधे उच्छ्वास १, पराघात १, उच्चगोत्र १,संहनन ६, संस्थान ६, नपुंसकवेद् १, स्त्रीवेद १, सुभग १, सुखर १, आदेय १, दुर्भग १, दुःखर १, अनादेय १ इति रसवन्ध समाप्त. (१७२) अथ प्रदेशबन्धयन्नम्, मूल प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेशबन्धखामि शतकात् हनीय आयु, मोहनीय वर्जी ६ कर्म श४५/६७ गुणस्थानवर्ती १० गुणस्थानवर्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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