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________________ १९६ श्रीविजयानंदसूरिकृत [८ बन्ध(१३७) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंधका अंतरा सर्वबंधका अंतरा देशबंधका अंतरा ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक भव १, ज०१ समय, उ०३ समय उ०३३ सागर पूर्व कोड १समय अधिक अधिक ३३ सागर ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक भव १, उ०१ समय अधिक ज०१ समय, उ० अंतर्मुहूर्त १ २२,००० वर्ष समुच्चय औदारिक समुच्चय एकेन्द्रिय औदारिक ज०३समय ऊणा क्षुल्लक पृथ्वीके औदारिकका भव १, उ०१ समय ज०१समय, उ०३ समय अधिक २२,००० वर्ष ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक अप, तेउ, वणस्सइ, भव १, उ०१समय अधिक बेइंद्री, तेइंद्री, चौरिंद्री ज०१ समय, उ०३ समय जिसकी जितनी स्थिति ज०२ समय ऊणा क्षुल्लक वायु औदारिक _भव, उ०समय अधिक ३,००० वर्ष ज०१ समय, उ० अंतर्महर्त ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य भव, उ० पूर्व कोड १ समय अधिक ज०१ समय, उ०१ अंतर्मुहूर्त जीव एकेन्द्रियपणा छोडी नोएकेन्द्रिय हुया फेर एकेन्द्रिय होय तो सर्वबंध, देशबंधना कितना अंतर ए (१३८) यंत्रम् सर्वबन्धान्तरम् देशबन्धान्तरम् ज०३समय ऊणा२क्षलक ज०१समय अधिक १क्षलुक एकेन्द्रिय नोएकेन्द्रिय भव, उ०२,००० सागर भव, उ०२,००० सागर फेर एकेन्द्रिय हुया संख्याते वर्ष अधिक संख्याते वर्ष अधिक पृथ्वी, अप्, तेउ, वाउ, ज०३ समय ऊणा २ क्षु- ज०१ समय अधिक १ शुल्लक बेइंद्री, तेइंद्री, चौरिंद्री, ल्लक भव, उ० वनस्पति- भव, उ० वनस्पतिकाल तिर्यंच पंचेंद्री, मनुष्य काल असंख्य पुद्गलपरावर्त असंख्य पुद्गलपरावर्त ज०३ समय ऊणा २ ज० १ समय अधिक १ क्षुल्लक वनस्पति क्षुल्लक भव, उ० असंख्याती भव १, उ० असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी (१३९) औदारिक शरीरके सर्वबंध, देशबंध, अबंधककी अल्पबहुत्व देशबंध सर्वबंध अबंधक - असंख्य गुणा ३ ............-सर्वसे स्तोक १ ........ विशेषाधिक २.. ए औदारिकका यंत्र चौथा इति औदारिक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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