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________________ तत्त्व नवतत्त्वसंग्रह १९५ - कार्तिक १ मागसर २ वैशाख ३, श्रावण ४ वदी पडिवा चंद्रग्रहणे - सूर्यग्रहणे १२ , चंद्रग्रहणे ऊगतो ग्रयो ग्रयो ज आप्रम्यो तदा ४ प्र हर दिन रात्री १ अहोरात्र आगे, एवं १२; रात्रिने छैहडे ग्रस्सा तदा ८ पहर आगले, एवं ८ वीचमे मध्यम तथा सूयो ऊगता प्रयो प्रस्यो ज आथम्यो तो ४ प्रहर दिनना, ४ रात्रिरा अने एक अहोरात्रि आगे, एवं १६; आथमतो आहे १२ प्रहर, दिने ग्रह्यो दिने छूटा तो रात्रिना ४ प्रहर, एवं ४. इति 'निर्जरा' तत्त्वसंपूर्णम् ॥ OM अथ अग्रे ‘बन्ध' तत्त्व लिख्यते. प्रथम सर्वबंध देशबंधनो स्वरूप लिखीये हे ते यंत्रात् ज्ञेयम्, (१३६) औदारिक शरीरना सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति सर्वबन्ध स्थिति देशबन्धस्थिति समुच्चय औदारिक शरीरना जघन्य १ समय, उत्कृष्ट प्रयोगबंधनी स्थिति १समय एक समय ऊणा तीन पल्योपम एकेन्द्रिय औदारिक ज०१ समय, उ० एक समय ऊणा २२,००० वर्ष पृथ्वीना ज०३समय ऊणा क्षुल्लक भव, , उ०१समय ऊणा २२,००० वर्ष. ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक अपू, तेजस्काय, वनस्पति, बेइंद्री, भव, उ०जिसकी जितनी तेइंद्री, चौरिंद्री औदारिक स्थिति है उत्कृष्टी सो १ समय ऊणी कहणी. ज०१ समय, उ०१ समय वायु औदारिक शरीर प्रयोग बंध , ऊणा ३,००० वर्ष ज्ञेयम् तिर्यंच पंचेंद्री मनुष्य औदारिक शरीर ज०१ समय, उ०३ समय ऊणे ३ पल्योपम ,,, एह औदारिकना देशबंध, सर्वबंधनी स्थिति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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