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________________ १९४ श्रीविजयानंदसूरिकृत [७ निर्जरा निवर्त्या पछे सूझे ,, मंडले १ प्रहर १प्रहर रात्रि १ प्रहर जा लग पडे तां लग सर्व क्रिया न करे ३ प्रहर १ अहोरात्रि ३ दिन २. उपाश्रय टूकडा स्त्री पुरुष झुझे उपाश्रय दूकडा मल्लयुद्धे १७ होली पर्व रज उडे जिस जगे निर्धात वादले अथवा अणवादले शब्द कडकड होवे १९ जूव० शुक्ल पक्षनी पडिवासे ३ दिन सब जगे २० जक्खालिए आकोशे अग्नियक्षप्रभावे जिस मंडले २१, कावी धौली धूयर गर्भमासे ,, जगे | पंचेन्द्रिय तिर्यंचना हाड, मांस, ६० हाथ दूर नही लोही, चाम मांजारी मुसा आदि मारे उपाश्रये उपाश्रय अभ्यंतर तथा ले जावे मनुष्याना हाड, मांस, लोही, चाम १०० हाथ उरे स्त्रीधर्मनी उपाश्रयमे स्त्रीजन्मनी पुरुषजन्मनी हाड पुरुषथी अलग कीया १००० हाथ माहे मलमूत्र जा लग दीषे गंध आवे मसाणना समीपे १००० हाथ चौफेरे राजाके पडणे जहां ताइ आज्ञा ३२ गाममे असमंजस प्रवर्ते न भांजे तो जिस मंडले ३३ सात घरमे कोइ प्रसिद्ध पुरुष मरे , गामे तथा सामान्य पुरुष सात घरांतरे मरे ३५ इंडा पू(फू)टे गाय वियाइ जर पडे ___ भूमी कंपे ३७ बुदबुदा रहित तथा सहित वर्षे ३८ नान्ही कुंवारे निरंतर वर्षे पक्षीनी रात्रि सब जगे ...प्रभात १, मध्याह्न २, अस्त ३, अर्ध .. रात्रि४ आसो १ कार्तिक २, चैत्र ३, आषाढ ४पूर्णमासी १२ वर्ष लगे तब लगे सदा नवा राजा न धैठे ८प्रहर १ अहोरात्रि कलेवर काळ्या पीछे सूझे , जगे १प्रहर " मंडले अहोरात्रि उपरांत असज्झाइ ७ दिन ४प्रहर असज्झाइ २ घटी १ अहोरात्रि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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