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तत्त्व]
नवतत्त्वसंग्रह प्र०, (४२) ब्रह्म प्र०, (४३) ब्रह्मोत्तर प्र०, (४४) लांतक प्र०, (४५) महाशुक्र प्र०, (४६) सहस्रार प्र०, (४७) आनत प्र०, (४८) प्राणत प्र०, (४९)पुष्प प्र०, (५०) अलका प्र०, (५१) आरण प्र०, (५२) अरुण प्र०, (५३) सुदर्शन प्र०, (५४) सुप्रबद्ध प्र०, (५५) मनोहर प्र०, (५६) सर्वतो प्र०, (५७) विशाल प्र०, (५८) सुमनस प्र०, (५९) सौमनस प्र०, (६०) प्रीतिकर प्र०, (६१) आदित्य प्र०, (६२) सर्वतोभद्र प्र० इति ६२ प्रतरनामानि.
अथ ध्यानसामाप्ती (?) सवैइया ३१ सापूज जो खमाश्रमण जिनभद्र गणि विभु दृषण अंधारे वीच दीप जो कहायो है सत सात अधिक जो गाथाबद्धरूप करी ध्यानको सरूप भरी सतक सुहायो है टीका नीका सुषजीका भेदने प्रभेद धीका तुच्छ मति भये नीका पठन करायो है लेसरूप भाव धरी छंद बंध रूप करी आतम आनंद भरी वा लष्या लगायो है ॥१॥ इति श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणविरचितध्यानशतकात्. (१३५) असज्झाइ स्थानांग, निसी[ह]थ, प्रवचनसारोद्धार (द्वा. २६८) थकी १उल्कापात तारा डूटे उजाला हुइ क्षेत्र जिस मंडळमे निवां पीछे १ प्रहर सूत्र न पढ़े
___ रेषा पडे आकाशमे . कणगते कहीये जिहां रेषा हुइ
___उजाला नही दिग्दाह दसो दिसा अग्निवत् राती
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होइ
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जा लग पडे ता लगे १ अहोरात्र निवां पीछे निवर्त्या पछे सूझे
२पहर
आकाशे गंधर्वनगर देवताना कीधा
दीसे आकाशथी सूक्ष्म रज पडे ।
मांसरुधिरवृष्टि केस १ पाषाणवृष्टि अकाल गजें
, वीजळी आसो सुदि ५ना दो पहरथी लेकर
कार्तिक वदि १ आषाढ चौमासी पडिकमणाथी
श्रावण वदि १२ एवं कार्तिक चौमासी २७ एवं चैत्र सुदि ५ थी वैशाख वदि .... पडवा लगे .
राजाना युद्ध - म्लेच्छने भये --
सब जगे
११ दिन असज्झाइ
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२, २॥ दिन २,२॥ दिन असज्झाइ
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११ , निवर्त्या पछे सूझे
जिस मंडले
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