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तत्त्व 1
पच्छन्नकालेणं
दिसामोहेणं साहुवयणं अकुंचनपसा०
अणत्थणाभोगे अ अ
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नवतत्त्व संग्रह
( ११८) १५ भेद पाण विना द्वार दूजा आगार संख्या
पारिट्ठावणिया लेवालेवेणं
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अथ आगार - अर्थ लिख्यते - अणत्थ० अत्यंत भूल गया, पच्चक्खाण करके भोजन मुखमे दीया पीछे पच्चक्खाण संभार्यो तदा तत्काल थूक देवे तो भंग नही १. सहसा० गाय आदि दोहना मुखमें छींट पडे, बलात्कारे मुखमे पडे पूर्ववत् थूके २. पच्छन्नकाल० सूर्य वादलसे ढक्यो पूरी पोरसी की बुद्धिसे पारे पीछे सूर्य देख्या तो पोरसी नही हूइ तदा मुखके कवलं राषमे यत्नसे धूके; पूरी हूइ पोरसी तदा फेर जीमे तो भंग नही इम सर्व जगे जानना. ३. दिसामो० पूर्व दिस (श) पश्चिम जाणे तदा पारे पीछे खबर पडे पूर्वोक्तवत् थूके ४. सा० साधुके वचनथी पोरसी जाणी जीमे पीछे जाण्या पोरसी नही आइ पूर्वोक्त० ५. महत्तरा ० अति मोटा काम संघ गुरुकी आज्ञासे जीमे तो भंग नहीं; ग्लान आदिकनी वैयावृत्य करणी विना खाया होइ नही, इस वास्ते भोजन करे तो भंग नही ६ सव्वसमाहि० प्रत्याख्यान कर्या है अने तीव्र शूल आदि उपना अथवा सर्प आदि डस्यो तदा आर्त्तध्याने मरे तो अच्छा नही
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