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________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [७ निर्जराइस वास्ते औषधी करे भंग नही ७. सागारी० जिसकी नजर लगे दोष हूइ तो अध जीमे उठके ओर जगे जायके जीमे पिण तिसकी दृष्टि आगे न जीमे अथवा साधुकं भोजन करतां गृहस्थ देखता होइ तो तिहाथी अन्यत्र जाइ जीमे तो भंग नही होइ ८. आउदृण-हाथ, पग आदि संकोचे पसारे तो भंग नही, वात आदि कारणात् ९. गुरुअमु०-गुरुकू आवता देखके जो खडा होवे तो भंग नही १०. पारिट्ठा०-विधिसे लीया विधिसे जीम्या इम करता जे विगय प्रमुख आहार ऊगर्या ते परिठावणिया गुरुनी आज्ञाये लेवे तो भंग नहीं. ११. लेवालेवे०-जे विगय त्याग्या है तिणे करी कडछी आदिक खरडी हूइ तिण कडछी करी आहर आदिक दीइ ते लेता व्रत भंग नही होइ १२. गिहत्थसं०-गृहस्थे आपणे काजे उ(ओ)दन दूधे(धसे) अथवा दही करी उल्या हूइ तिहा जे धान्य उपरि चार आंगुल चडिउ दूध दही हूइ ते निवीये कल्पे, जो पांच अंगुल तो विग(य) ही जाननी. ए आचाम्ल ताइ कल्पे १३. ए आगार साधुने. उखित्तवि०-गाढी विगय गुड पकवान आदिक पोली ऊपरि मूकी हुइ ते उपाडी दूर करी ते पोली आचाम्ल ताइ कल्पे १४. ए आगार साधुने, पडुचमक्खि०सर्वथा रूषा मंडक आदिकने राख दूर करनेकू हाथ फेरे मंडा फेरे १५. पञ्चक्खाण तिविहार करे तदा पाणीके छ आगार-पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा अच्छेण वा वहलेण वा ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसरामि. अस अर्थ-पाण. जिस करी भाजन आदि खरडाइ ते खर्जुर आदिकनउ पाणी लेपकृत १. अलेवे० अलेप पाणी कांजिका प्रमुख २. अच्छेण० अच्छा निर्मल तत्ता पाणी ३. वहलेण. वहल डोहलउ तंदुल धोवल प्रमुख ४. ससित्थे० सीथ सहित उसामण आदि ५. असित्थे० सीथ रहित पाणी ६; ए ६ पाणी लेवे तो भंग नही. पच्चक्खाण करणेवाला वोसरामि कहै। गुरु करावणेवाला वोसरह कहै. श्रावकहूं आचाम्ल नीवीमे पाणी भोजन अचित्त करे, सचित्त न करे, अने श्रावकने आचाम्ल नीवीमे तीन आहारका त्याग जानना. नमोकारसीमे अने रात्रिभोजनमे साधुके च्यार ही आहारका त्याग निश्चै करी होय है, शेष पचक्खाण तिविहार चौविहार होय है. रात्रिभोजन १ पोरसि २ दोपहीरी ३ एकासणेमे श्रावकने दो आहार, तीन आहार, चार आहारका त्याग होवे है. ए सर्व पञ्चक्खाणका भेद जानना. ____ अथ च्यार आहारका खरूप लिख्यते-प्रथम अशनके भेद-शालि, ज्वारि, वरठी प्रमुख सर्व ओदन १, मूंग आदि सर्व दाल २, सत्तू आदि सर्व आटा ३, पेठ आदि सर्व तीमण ४, मोदक आदि सर्व पकवान ५, सूरण आदि सर्व कंद ६, मंडक आदि सर्व तली वस्तु ७, वेसण ८, विराहली ९, आमला १०, सैंधव ११, कउठपत्र १२, लीवुपत्र १३, लूण १४, हींग १५; ए सर्व अशनका भेद जानना. १. ___ पाण० पाणी कांजिक १, जव २, कयर ३, ककोडा आदिकनो धोवण ४, अवर सर्व शास्त्रोक्त धोवण ५, ए सर्व पाणी; साकरपाणी १ आंबिलपाणी इक्षु रसप्रमुख सर्व सरस पाणी. ए पाणीमे गिण्या पिण व्यवहारे अशन ही है. २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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