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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[ ६ संवर
३५ परि- 'सिय अस्थि, प्रतिपद्यमान
प्रतिपाद्यमान णाम | सिय नत्थिान
यहोवे, नही बी
जदि अस्थि होवे जोकर ज० १, २, ३, होवे तो ज०१,
पूर्वप्रतिपन्न २,२,उ०पृथक
उ० पृथक् शतः स्याद् अस्ति |
- शत; पूर्वप्रति
पन्न जघन्य, यद्यस्ति ज० १,२,३; उ० पृथक् सहस्त्र
प्रतिपद्यमान प्रतिपद्यमान होवे बी, नही होवे बी, नही वी होवे जो प्रतिपद्यमान | बी होवे; जो| होवे तो स्याद् अस्ति, होवे तोज०१, ज० १, २, ३, स्याद् नास्ति; २,३,उ० पृथक उ०१६२ तिनमे यद्यस्ति तदा
सहस्र; पूर्व- १०८ क्षपक ५४ ज० १, २, ३, | प्रतिपन्न उपशम: पूर्व- उ0पृथकुशतं;
जघन्य. प्रतिपन्न होवे पूर्वप्रतिपन्न उत्कृष्ट पृथक बी, नही बी ज० उ०पृथक सहस्र कोटि होवे होवे तो कोटि
| ज०१,२,३, उ० पृथक् शत
स्थाद् नास्ति उत्कृष्ट पृथक
शतकोटि
३६
अल्प २संख्येय गुणा४संख्येय गुणा ५ संख्येय गुणा ६ संख्येय गुणा १ स्तोक ३संख्येय गुणा बहुत्व (११३) अथ श्रीभगवती (श. २५, उ.७) थी संयत ५ यंत्रम् सामायिक | छेदोपस्थाप- परिहार
यथाख्यात ५ नीय २ | विशुद्धि ३ सम्पराय ४
पुरुषवेद १, ।
| उपशांतवेद, उपशांतवेद, वेद २ वद, अवदा सामायिकवत् कृत नपुंसक
क्षीणवेद । वेद २
क्षीणवेद
प्रज्ञापना
वा
राग
सरागी--->ए
उपशांतराग,
क्षीणराग स्थितकल्प १,
अस्थित २, स्थितकल्प १, स्थितक स्थितकल्प, स्थितकल्प १, जिनकल्प ३./ जिनकल्प २, जिनका अस्थितकल्प | आस्थतकल्प स्थविर ४, स्थविरकल्प ३:
परकल्प स्थविरकल्प ३२,कल्पातीत २,कल्पातीत कल्पातीत ५
४
कल्प
५ पुलाकादि षट्
आद्य ४
आध ४ कषायकुशील कषायकुशील निम्रन्थ १,
स्नातक २
मूलगुण १, ६ प्रतिसेवना उत्तरगुण२, सामायिकवत अप्रतिसेवी | अप्रतिसेवी | अप्रतिसेवी
सेवेष (ख)डे,
अप्रतिसेवी ३ १ कथंचित् होय । २ कथंचित न होय । ३ जो होय । ४,५,६ अनुक्रमे १,२,३ प्रमाणे ।
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