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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह १४५ संशोपयुक्त १, २५ संज्ञा नोसंशोपयुक्त नोसंज्ञोपयुक्त एवम् एवम् नोसंज्ञोपयुक्त पयुक्त - आहारी अना २६ आहार आहारक आहारी आहारी | आहारी आहारी हारी १ तेही २७ भव ज० १, उ०३ ज० १, उ०८ ज० १, उ०८ ज० १, उ०८ ज० १, उ० ३ ज० २८ आकर्ष ज०१, उ० ज०१, उ० ज०१, उ० पृथक् शत पृथक् शत | पृथक् शत ज०१, उ०२ १ एकभव आधी ज०१, उ०३ घणे भव आश्री ज०२, उ०७ ज०२, उ०७२०० ज०२, उ० ७२०० ज०२, उ० ७२०० ज०२, उ०५ . ज० अंत २९ स्थिति | एक जीव आश्री ज० उ० अंतर्मुहूर्त ज०१ समय, उ० देश ऊन पूर्व कोटि मुहूर्त, ज०१ समय उ० देश उ० अंतमुहूत ऊन पूर्व एवम् एवम् कोटि सर्वाद्धा सर्वाद्धा सर्वाद्धा ज०१ समय, सर्वाद्धा उ० अंतर्मुहूर्त नाना जीव ज०१ समय, आश्री उ० अंतर्महर्त ३० अंतर- ज० अंतर्मुहूर्त एक जीव उ० वनस्पतिआश्री काल एवम् नास्ति अंतरम् ज०१ समय, घणा जीव उ० संख्यात नास्ति अन्तरम् नास्ति अन्तरम् नास्ति अन्तरम् ज०१समय, उ०६समय"" आश्री __ वर्ष ३१ समु. वे १, क २, वे १, क २, वे १, क २, द्धात मर ३ ३, वै४,ते ५म ३, वै४,ते ५ केवल नही . १ केवल ३२ क्षेत्र लोकके असं. एवम् असंख्यमे घणे, असंख्य सर्व लोक ख्यमे भाग ३३ स्पशेन ३४ भाव क्षयोपशम ए व म् वीपशामिक औपशमिक वा क्षायिक क्षायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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