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________________ नवतत्त्वसंग्रह १४७ ज्ञान २।३।४ प्रवचन (३२।३।४ ज्ञान; २३४ ज्ञान; २३४१ ज्ञान; ज०८ प्रवचन, उ०प सामायिकवत् प्रवचन, ज०९प्रवचन ज०८/प्रवचन, ज०८ पूर्व, उ० १० उ०१४ पूर्व उ० १४ पूर्व पठन करे मठेरा श्रुतातीत तीर्थ । तीर्थे तीर्थे तीर्थे । तीर्थे अतीर्थ वा अतीर्थे अतीर्थ - तीर्थ लिंग द्रव्ये ३, भावे सामायिकवत् । वलिंग । व ३ द्रव्ये भावे १ द्रव्ये ३, भावे द्रव्ये ३, भावे? स्खलिंग स्खलिंग स्वलिंग औ, तै, का. ३ औ, तै, का.३ औ, तै, का. शरीर ५ | • • • || - | - | - | क्षेत्र कर्मभूमि, जन्म० कर्म०, संहरण आश्री संह० सर्वत्र कर्मभूमि जन्म० कर्म०, जन्म० कर्म जन्म आश्री संह० सर्वत्र संह० सर्वत्र सर्वत्र एवं बकुशवत्, बकुशवत् अवव नवरं जन्म | पुलाकवत् | निम्रन्थवत् । सर्व जानना निर्ग्रन्थवत् काल सर्पिणी उत्स- महाविदेह पिणी भावनीय नही - विराधक चार जातके देव. ज० सौधर्म, ज० उ० पंच अनुत्तरगति तामे आराधक सामायिकवत् उ०८ मा देव विमाने वा ज० सौधर्म, लोक । अनुत्तरेषु सिद्धगतो उ० सर्वार्थ उत्पद्यते सिद्ध स्थिति ज०२ ज०२ पल्यो- ज०, उ०३३ ज०, उ०३ स्थिति, पल्योपम, उ० पम, उ०१८ | सागरोपमा सागरोपम; | पदवी पासे ३३सागरोपमा सामायिकवत सागरोपमः पदवी एक पदवी एकपदवीपांचमेसू पदवी ४ मे अहमिन्द्रकी अहमिन्द्र अन्यतर १ अनंतर एकाय पामे असंख्याते, संयमस्थिति असंख्याते ४ | असंख्याते ४ असंख्याते ३ अंतर्मुहूर्तके | अल्पबहुत्व | असंख्यगुणे तुल्य | असंख्यगुणे | समय तुल्य | १ स्तोक २ असंख्यगुण १४ पदवी पामे | एक्यं | १ पांच अनत्तरोमां उत्पम थाय छ। 'अनत्तर' विमानमां अथवा सिद्ध गतिमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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