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[६ संबर
श्रीविजयानंदसूरिकृत (११२) अथ ३६ द्वार यंत्रमे वर्णन करीये है१ प्रज्ञापन । १ पुलाक २ बकुश ३ प्रतिसेवना ४ कषाय- निर्ग्रन्थ
स्नातक
पुरुष, नपुंसक,
२ वेद .
कृत्रिम पिणा स्त्री, पुरुष,
बकुशवत्
अथवा बकुशवत् क्षीणवेद उप-
शांतवेदे भवेत्
नपुंसक कृत्रिम
उपशांतवेद, क्षीणक्षीणवेद
वेद
जन्मनपुंसक नही इति वृत्ती
३ राग
सरागी
- सरागी |
सरागी
सरागी
उपशांत क्षीण
क्षीण राग
४कल्प
| बकुशवत् स्थविर, कल्पा
स्थित, स्थित, अस्थित,
स्थित,अस्थित, स्थित,
जिनकल्प, अस्थित, जिनकल्प,
निर्ग्रन्थअस्थित,
वत् स्थविर स्थविर
कल्पातीत
तीत सामायिक, | सामायिक, | सामायिक,
आद्य
यथाछेदोपस्था- | छेदोपस्थाप- छेदोपस्थाप
यथाख्यात
ख्यात पनीय
नीय
५ चारित्र
नीय
चार
६ प्रतिसेवना
मूल गुण, उत्तर गुण
उत्तर गुण
२वा३प्रवचन
ज०८, उ० ७ शाम प्रवचन
नवमे पूर्वकी
३ वस्तु
२ वा ३ प्रवचन; ज०८, उ०१० पूर्व
अप्रतिपुलाकवत् | | अप्रतिसेवि | अप्रतिसेवी
सेवी २ वा ३ वा
केवल ४ प्रवचन; कषायकुशीलबकुशवत्
ज०८, उ० वत् व्यति१४ पूर्व
कषाय तीर्थमे तीर्थमे
कषायकुशील- कुशीलअतीर्थमे वा वत्
वत्
८ तीर्थ
तीर्थमे
तीर्थमे
९ लिंग
| द्रव्ये ३ भावे
स्खलिंग
1
१० शरीर
३ औ, तै, का ४ औ, वै, ते, ४ औ, वै, तै,
|
पांच न
३ औ, तै, का.
११ क्षेत्र
जन्म कर्मभूमि जन्म कर्म० | संहरण नही संहरण अकर्म.
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