SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ [६ संबर श्रीविजयानंदसूरिकृत (११२) अथ ३६ द्वार यंत्रमे वर्णन करीये है१ प्रज्ञापन । १ पुलाक २ बकुश ३ प्रतिसेवना ४ कषाय- निर्ग्रन्थ स्नातक पुरुष, नपुंसक, २ वेद . कृत्रिम पिणा स्त्री, पुरुष, बकुशवत् अथवा बकुशवत् क्षीणवेद उप- शांतवेदे भवेत् नपुंसक कृत्रिम उपशांतवेद, क्षीणक्षीणवेद वेद जन्मनपुंसक नही इति वृत्ती ३ राग सरागी - सरागी | सरागी सरागी उपशांत क्षीण क्षीण राग ४कल्प | बकुशवत् स्थविर, कल्पा स्थित, स्थित, अस्थित, स्थित,अस्थित, स्थित, जिनकल्प, अस्थित, जिनकल्प, निर्ग्रन्थअस्थित, वत् स्थविर स्थविर कल्पातीत तीत सामायिक, | सामायिक, | सामायिक, आद्य यथाछेदोपस्था- | छेदोपस्थाप- छेदोपस्थाप यथाख्यात ख्यात पनीय नीय ५ चारित्र नीय चार ६ प्रतिसेवना मूल गुण, उत्तर गुण उत्तर गुण २वा३प्रवचन ज०८, उ० ७ शाम प्रवचन नवमे पूर्वकी ३ वस्तु २ वा ३ प्रवचन; ज०८, उ०१० पूर्व अप्रतिपुलाकवत् | | अप्रतिसेवि | अप्रतिसेवी सेवी २ वा ३ वा केवल ४ प्रवचन; कषायकुशीलबकुशवत् ज०८, उ० वत् व्यति१४ पूर्व कषाय तीर्थमे तीर्थमे कषायकुशील- कुशीलअतीर्थमे वा वत् वत् ८ तीर्थ तीर्थमे तीर्थमे ९ लिंग | द्रव्ये ३ भावे स्खलिंग 1 १० शरीर ३ औ, तै, का ४ औ, वै, ते, ४ औ, वै, तै, | पांच न ३ औ, तै, का. ११ क्षेत्र जन्म कर्मभूमि जन्म कर्म० | संहरण नही संहरण अकर्म. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy