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तत्त्व]
नवतत्त्वसंग्रह
पुलाकवत् निर्ग्रन्थ
अवसर्पिणीमे १२ काल जन्म आश्री/ जन्म अवस- बकुशवत् बकुशवत्
३१४ आरे पिणी ॥४॥५ छता भाव | आरे, छता
जन्म आश्री आश्री श५/ २४ आरे, आरे. उत्स- उत्सर्पिणी
संहरण आश्री वत् पिणीमें जन्म जन्म आश्री
सर्वत्र आश्री शश४ शहार, छता
आरे; छता ३।४, संहरण भाव आश्री सर्व ३२४ आरे
ज० सौधर्म, ज० सौधर्म,उ० ज० सौधर्म, उ० ८ मा देवलोकः१२ मे देवलोक;
उ० पांच पांच अनुत्तपदवी-इंद्र, पदवी ४ मेसु पदवी ४ मेसुं|
अनुत्तरः । रमे; पदवी सामानिक, एक स्थिति एक स्थिति
पदवी पांच- एक अहमिन्द्रः मोक्ष. प्रायस्त्रिंशत्,
बकुशवत्
मेसु एका ज० स्थिति। गति रा, ज० पृथक - ज० पृथक लोकप ल, पल्योपम, उ० पल्योपम, उ०
पृथकपल्योपम, ज० उ० ३३
उ०३३ । सागरोपम १८ सागरोपमा२२ सागरोपम
सागरोपम १४संयमस्थान असंख्याते, ३/ असंख्याते, | असंख्याते, | असंख्याते, एक, एक,
अल्पबहुत्व असंख्य गुणे ४असंख्य गुणे ५ असंख्य गुणे ६ असंख्य गुणे स्तोक तुल्य १५ चारित्र- पु ६ स्थान अनंत गुण हीन अनंत गुण हीन ६ स्थान अनंत गुण हीन अनत
गुणहान पर्यायना ब
। ६ स्थान । ६ स्थान अधिक
" " " " " "
१३ गति,
अनंत गुण
सन्निकर्ष
अनंत गुण अधिक ६ स्थान अनंत गुण अनंत गुण | अनंत गुण | अनंत गुण
अधिक अधिक अधिक अधिक अनंत गुण | अनंत गुण | अनंत गुण / अनंत गुण अधिक अधिक अधिक अधिक
तुल्य
तुल्य
जघन्य उत्कृष्ट
१स्तोक २ अनंत गुण
३ अनंत गुण ४ ,
३ तुल्य । १ तुल्य ५ अनंत गुण ६ अनंत गुण
७अनंत ७तुल्य ७.
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