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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह १३९ जयंती माता नाम | भद्रा सुभद्रा सुप्रभा सुदर्शना विजया वैजयंत - गति | मोक्ष - → ए व अपरा- रोहिणी जिता ब्रह्मलोक १२ सो आयु ८५ लक्ष ७५ लक्ष ६५ लक्ष वर्ष । वर्ष वर्ष हजार वर्ष १८१९ २०२३ तीर्थकरके वारे श्रेयांस वासु- | विमल- अनंत पूज्य | नाथ ना धर्मनाथ नामके अंतरे के अंतरे। नाथ • वर्ण । म् - सुवर्ण इति नवतत्त्वसंग्रहे पुण्यतत्त्वं तृतीया(य) संपूर्णम् . अथ 'पाप'तत्त्व लिख्यते-प्राणातिपात १, मृपावाद २, अदत्तादान ३, मैथुन ४, परिग्रह ५, क्रोध ६, मान ७, माया ८, लोभ ९, राग १०, द्वेष ११, कलह १२, अभ्याख्यान १३, पैशुन्य १४, परापवाद १५, रतिअरति १६, मायामृषा १७, मिथ्यादर्शनशल्य १८ इनसे पापका बंध होइ. ८२ प्रकारे पाप भोगवे-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, असातावेदनीय १, मोहनीय २६, नरक-आयु १, नरक-तिर्यंच-गति २, जाति ४, संहनन ५, संस्थान ५, अशुभ वर्ण आदि ४, नरक-तियंच-आनुपूर्वी २, अशुभ विहायोगति १, उपघात १, स्थावरदशक १०, नीच गोत्र १, अंतराय ५; एवं सर्व ८२ प्रकारे भोगवे. इति नवतत्त्वसंग्रहे पापतत्त्वं चतुर्थं सम्पूर्णम्. अथ 'आश्रव'तत्त्व लिख्यते २५ क्रियाओ-(१) काइया-कायाव्यापार करी नीपनी ते 'कायिकी'. (२) अहिगरणीया-जिस करी जीव नरक आदिकनो अधिकारी होय ते 'अधिकरण', ते भंडा अनुष्ठान अथवा खड्ग आदि तिहां उपनी ते 'अधिकारणिकी'. (३) पाउसिया-मत्सरभावे नीपनी ते 'प्राद्वेषिकी'. (४) परियावणिया-आपकू अथवा परकू परितापना करता 'पारितापनिकी. (५) पाणाइवातिया-अपणा अथवा परना प्राण हरता 'प्राणातिपात' क्रिया. (६) आरंभिया-जीवने वा जीवना कलेवरने तथा पीठीमय जीवना आकारने अथवा वस्त्र आदिकने आरंभतां-मर्दतां 'आरंभिकी', ७ परिग्गहिया-जीवका अने अजीवका परिग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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