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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह १३७ उपदेश देते है. हे नाथ ! मेरी एह प्रार्थना है जो सचमुच आपका समवसरण देखू भक्ति संयुक्त पदपंकज स्पर्श मस्तकेन. (१११) (चक्री आदि संबंधी माहिती) चक्री- पिता- माता विज- षट्- दीक्षा- पूर्व- पूर्व नाम नाम E है नाम र १ भरत ऋषभदेव पूर्व ६ लाख लाख | २ सगर सुमति हजार ७० पूवर सहन हजार वर्ष वर्ष लाख लाख FIREE | राजा | ३मघवा विजय वर्ष ५हजार लाख ३ शिम प्रैवेय- लोक वर्ष ५/४२ हजार वर्ष ९० लाख राट्र किणी | क लाख धनु ४ सन- अश्वसेन सह ५० वर्ष वर्ष डा. हजार ९० हज ना कुमार ५शा- विश्वसेन अचि तिनाथ ६कंथसूरसेन नाथ | + | + ७अरनाथ सुदर्शन E कार्ति ८सुभूम वीर्य + | ९ महा-पद्मोत्तर (ज्वा) वर्ष वर्ष वर्ष वितह बीत- ब्रह्म-मोक्ष राजा की २०० ०० हजार राजा शोका देव १ मस्तक वडे । २-१२ आ तेमज बीजा पण कैटलांक नामो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रथी जुदा पडे छे ते विचारणीय छ । Jain Education International 96 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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