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________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [२ अजीव(९८) अंतरयंत्रं भग० सू.७४४ परमाणु-पुद्गल द्विप्रदेश आदि-अनंत प्रदेश पर्यंत जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट स्वस्थाने १समय असंख्य काल | १समय | असंख्यात काल परस्थाने अनंत - एकवचने " " आवलि आवलि असंख्य खस्थान असंख्य भाग अचल एकवचने भाग परस्थान असंख्य काल अनंत काल नास्ति अंतर नत्थि नस्थि । नत्थि बहुवचने अचल नास्ति अंतरं सर्वत्र अंतर समुच्चये १ समय असंख्य काल| असंख्य काल १ समय उत्कृष्ट असंख्य काल - (९९) कालमान स्थितिमान यंत्रम् भग० श. २५, उ. ४ (सू. ७४४) परमाणु द्विप्रदेशादि-अनंत प्रदेशी पर्यन्त जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य । उत्कृष्ट देशैज आवलिके असं. १ समय ख्यमे भाग एकवचने सर्वैज १समय आवलिके असं ख्यमे भाग निरेज असंख्य काल असंख्य काल बहुवचने देशैज सर्वाद्धा सर्वाद्धा (१००) अंतर मानका यंत्र (भग० सू.७४४) परमाणु द्विप्रदेशादि-अनंत प्रदेशी (पर्यन्त) जघन्य उत्कृष्ट जघन्य . उत्कृष्ट स्वस्थाने १ समय । असंख्य काल देशैज परस्थाने * अनंत स्वस्थाने सर्वैज । १समय । असंख्य काल परस्थाने सर्वाद्धा सर्वाद्धा १ परमाणुपुद्गलो तेमज द्विप्रदेशादि स्कंधो सर्व अंशे सदा काल कंपे तेमज सदा काल निष्कंप रहे। असंख्य " अनंत , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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