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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह (९६) भगवती शतक २५, उ. ४ सू. ७४१ द्रव्याथै प्रदेशार्थे परमाणु १ । संख्यातप्रदेशी २ | असंख्यातप्रदेशी ३) अनंतप्रदेशी ४ २ अनंत गुणा | ३ संख्यात गुण ४ संख्येय गुण । १ स्तोक ,, , , संख्येय ,, ,, असंख्येय ,, , , | ४ संख्यात , ६ असंख्यात ... . " अनंत २ द्रव्यार्थे प्रदेशार्थे क्षेत्रयंत्र एकप्रदेशावगाढा १ संख्यातप्रदेशावगाढा २ असंख्यप्रदेशावगाढा ३ द्रव्याथै स्तोक २संख्येय गुणा ३ असंख्येय गुणा प्रदेशाथै द्रव्याथै , , , ४ " " प्रदेशार्थे क्षेत्रयंत्रवत् कालयंत्र कालयंत्रमे एक समय स्थिति आदि कहनी. , स्तोक द्रव्यार्थे प्रदेशाथै द " भाव एक गुण १गुण संख्येय गुण असंख्येय गुण कर्कश आदि ४ अनंत गुण २ संख्येय ३ असंख्येय ४ अनंत , , , असंख्येय , , ,, द्रव्यार्थे [असंख्येय _____ प्रदेशार्थे । __, ५ , ७ , सोले बोलना यंत्र परमाणु आदिवत् जान लेना द्रव्यवत्. (९७) परमाणु आदि अनंतप्रदेशी स्कंध चल अचल स्थिति भगवती (श० २५, उ० ४, सू. ७४४) उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति चल (सैज) एकवचने १ समय | । अचल (निरेज) , चल बहवचने अचल बहवचने सर्वाद्धा. आवलिके असंख्यातमे भाग असंख्याता काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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