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श्रीविजयानंद सूरिकृत
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१२ रहै इसका नाम ' विश्लेष' है. इस कारण ते चवदें प्रदेशके चढे ते बारा घटे अने ऊर्ध्व लोक सुख २, भूमि १०, विश्लेष ८ रहे. एवं ७ प्रदेश चढे ४ की दृद्धि अने ऊपर हाणा. एवं सर्वत्र ज्ञेयम् कोइ कहै है जो एकेक प्रदेश लोक घटया है, सो अशुद्ध है: किस वास्ते १
लोकी ऊंची श्रेणिमे तीन युग्म कहें हैं श्री भगवतीजीमे - कृतयुग्म, द्वापरयुग्म, त्रजः एवं ३. अने जो प्रदेश प्रदेशकी हान वृद्ध माने चारो ही युग्म हो जाते है; इस वास्ते द्वे द्वे चार द्वे द्वे द्वे चढनेसे एकेक प्रदेशकी हान होती है. एवं सर्वत्र ज्ञेयम्.
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अथ श्रीपन्नवणाजी १० मे पदे १२ बोलकी अल्पबहुत्व लिख्यते - सर्वसे थोडा लोकका एकेक अचरम खंड १, लोकके चरम खंड असंख्य गुणे, तेभ्यः अलोकके चरम खंड विशेषाधिक ३, तेभ्यः लोकालोकके चरमाचरम खंड विशेषाधिक ४, तेभ्यः लोकके चरम प्रदेश असंख्यात गुणे ५, तेभ्यः अलोकके चरम प्रदेश विशेषाधिक ६, तेभ्यः लोकके अचरम प्रदेश असंख्य गुणे ७, तेभ्यः अलोकके अचरम प्रदेश अनंत गुणे ८, तेभ्यः लोक अलोकके चरमाचरम प्रदेश विशेषाधिक ९, तेभ्यः सर्व द्रव्य विशेषाधिक १०, ते किम १ जीव, पुद्गल, काल अनंते अनंते है, इस वास्ते, तेभ्यः सर्व प्रदेश अनंत गुणे १७ (१), अवक्तव्य प्रदेश मिले लोक स्वरूपमें जो पीले रंग करे है चार खंड तिस थकी सर्व पर्याय अनंत गुणी ? प्रतिप्रदेशे अनंती है; एवं १२. इह स्वरूप १०।११ मे बोलका केवली जाणे पिणबुद्धि समजमे आया तैसे लिख्या है; आगे जो बहुत कहँ सो सत्य; मूत्राशय अति गंभीर है.
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अथ चरमाचरम स्वरूप लिख्यते - गोल अने पीला तो लोकका अचरम खंड है. अनं जे लाल रंग के आठ खंड है तिनकूं लोकके निखुड' कहीये है तिनकूं ही लोकके ' चरम खंड ' कहीये है. तिनके ऊपर बारां खंड नीले 'अलोकके चरम खंड ' कहीये है. तिन बारां खंडसे परे जो अलोक है सो सर्व अलोकका एक अचरम खंड है. इन चाराके प्रदेशांकू 'चरम तथा अचरम ' कहीये है. एतावता चरम खंड सर्व 'चरम प्रदेश नू अचरम खंडके 'अचरम प्रदेश' जानने. असत् कल्पना करके आठ अने बारा खंड लोकालोकके कहे है. परमार्थथी असंख्य निखुड जानने अने ए जो निवुड है सो ? म
१ तेथी ।
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