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________________ तत्त्व] - द्वार नवसत्त्वसंग्रह (७५) (पर्याप्ति अपर्याप्ति षटु) मेद पर्याप्ति षट् ६ . अपर्याप्ति षटू ६ प्रारंभ- समाप्ति- प्रारंभ- समाप्ति| सर्व पर्याप्ति अनुक्रमसे पूरी सर्व एक साथ अनुक्रमसे पूरी साथ मांडे करे लब्धि अपर्याप्त ४ साथ मांडे | ३ पूरी करे पर्याप्ता लब्धि अपर्याप्त ५साथ मांडे ४ अनुक्रमे पूरी | करे मांडे एकेन्द्रिय ४ साथ मांडे ४ अनुक्रमे पूरी | करे बेइंद्री, तेइंद्री, चौरिद्री, असंही लब्धि पर्याप्त ५ साथ मांडे ३।४।५ अनुक्रमे पंचेंद्री पूरी करे गर्भज मनुष्य, करण अपर्याप्त ६ साथ मांडे," " गर्भज तिर्यंच ६ अनुक्रमे पूरी पंचेंद्री करण पर्याप्त नैरयिक १ करण अपर्याप्त देवता करण पर्याप्त |, , ,६ पूरी करे | (७६) पर्याप्तिके सर्व कालकी अल्पबहुत्व आहार पर्याप्ति १ शरीर पर्याप्ति २ इन्द्रिय पर्याप्ति ३ वाला भाषा पर्याप्ति ५ मन पर्याप्ति ६ |, , , ५अनुक्रमे पूरी २ असंख्य ३ विशेष अधिक | ४ विशेष ४वि.काल करे कालका |" " " " " " " " " " " ५विशेष किञ्चित् न्यून ६ विशेष अधिक ६ अधूरी ते किश्चित् न्यून " " | ६ तुल्यम् www.jainelibrary.org " " " " Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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