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________________ o मन ६ . . श्रीविजयानंदसूरिकृत [१ जीब(७७) श्रीप्रज्ञापना पद २८ मेथी पर्याप्ति खरूपयंत्रमिदम् पर्याप्ति ६ । आहार १ शरीर २ । इन्द्रिय ३ | श्वासोच्छ्- | भाषा ५ वास ४ अपर्याप्ति अपर्याप्त अपर्याप्त । अपर्याप्त अपर्याप्त अपर्याप्त अपर्याप्त आहारक नियमात् आहारी आहारी आहारी आहारी आहारी अनाहारी | अनाहारी | अनाहारी | अनाहारी | अनाहारी | अनाहारी अनाहारी (७८) आहारयंत्र पन्नवणा पद २८ द्वार स्वामी संख्या - सचित्त १ तिर्यंच १ मनुष्य २ अचित्त २ | देव १, नरक, २, तिर्यंच ३, मनुष्य ४ मिश्र ३ तिर्यंच १, मनुष्य २ ओज१ अपर्याप्त अवस्थामे १ रोम २ - रोम पर्याप्त २ बेंद्री, तेइंद्री, चौरेंद्री, कवल ३ तिर्यंच पंचेंद्री, मनुष्य आभोगनिवृत्तितः रोमआहारी कवल आहारी अनाभोगनिवृत्तितः ओज आहारी, रोम आहारी how na #wem w hostor s houston मनोश अमनोज्ञ देवता आदिक नरक आदिक १०. अथ १४ गुणस्थान स्वरूप लिख्यते-(१) मिथ्यात्व गुणस्थान, (२) साखादन गु., (३) मिश्र गु., (४) अविरति सम्यग्दृष्टि गु., (५) देशविरति गु., (६) प्रमत्त संयत गु., (७) अप्रमत्त संयत गु., (८) निवर्त्य बादर (अपूर्वकरण १) गु., (९) अनिवर्त बादर (अनिवृषि) गु., (१०) सूक्ष्म संपराय गु., (११) उपशांतमोह गु., (१२) क्षीणमोह गु., (१३) मयोगी केवली गु., (१४) अयोगी (केवली) गु. इति नाम. __ अथ लक्षण–प्रथम गुणस्थानका लक्षण-कुदेव माने; कुदेवके लक्षण-यथ विषयी होवे, पुण्य प्रकृति भोग ले, राग द्वेष सहित होवे तेहने देव माने १. कुगुरु-चारित्र, धर्म रहित जे अन्यलिंगी तथा खलिंगी गुणभ्रष्ट, परिग्रहना लोभी, अभिनिवेशकी(शी), पॉA महाव्रते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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