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________________ ७८ श्रीविजयानंदसूरिकृत (७३) (पुद्गलपरावर्तन ) भगवती श० १२, उ० ४ ( सू० ४४८ ) तैजस भौदारिक १ वैकिय २ पुगलपरावर्तन ७ स्तोक काल सर्वमे किस का ? ५ थोडा पुद्गल कौनसा [कस्य ] अनंत गुणा अने बहुता कौनसा ? ३ अनंत 6) ४ 20 Jain Education International अनंत १ स्तोक प्रारंभकालयंत्रम् प्रथम २ ३ ५ ६ समय समय समय समय समय समय १ आ आ आ आ आ आहार हार हार हार हार हार शरीर शरीर शरीर शरीर शरीर इन्द्रि - इन्द्रि इन्द्रि इन्द्रि य य य य सासो सासो सासो पुद्गल भाषा भाषा मन ३ २ अनंत ६ अनंत गुणा (७४) अथ पर्याप्तियंत्रम् सर्व पर्याप्तिका समय समुच्चयकाल 3:5 99 कार्मण ४ ५ 33 १ स्तोक O ७ अनंत विक अंतर्मुहूर्त - न्द्रिय ० एके न्द्रिय मनपुद्गल वचनपुद्गल आनप्राण ६ ७ १ २ स्वामी स्तोक असं ख्य ल ब्धि अपर्य ५ अनंत गुणा 0 संज्ञी पंचे- आ- शरीर इन्द्रि य हार न्द्रिय For Private & Personal Use Only ३ अनंत २ अनंत 33 33 33 ० समाप्तिकालयंत्रम् १३ वि शेष अधि क O 125 ६ अनंत 13 "" 0 33 33 39 घ श्वा ४ ५ ६ विशे- विशे- वि. ष शेष च्छ् वास [१ जीव 124 35 ४ अनंत ४ अनंत भाषा मन 'निश्चयनयमतेन सर्व पर्याप्ति एक साथ प्रारंभे पिण व्यवहार नय मते एक समयांतर. आहार पर्याप्तिने एक समय लगे अने अन्य सर्वने अंतर्मुहूर्त कालम् पृथक् पृथक्. १ निश्चय नयना अभिप्राय अनुसार । 19 www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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