SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ mnm २८ श्रावक धर्म-अणुव्रत ~~~~~m mmm. धर्म विरुद्ध कार्य-लोक व्यवहार और लोक विरुद्धता से बचने के लिये अनिवार्य योग प्राप्त होने से करूं अथवा व्यवहार से प्रणाम नमस्कार करूं तो जयणा। निस्संकिय निक खिय,निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठिा उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥ भावार्थ--(१) निशङ्कता-वीतराग भगवन्त के वचन में शङ्का नहीं करना (२) कांक्षारहित-जो वीतराग भाषित नहीं है उस की चाहना नहीं करना (३) निःसंदेहत्यागियों के त्यागवृत्ति के कारण वस्त्रादि की मलीनता पर घृणा नहीं करना धर्म के फल में संदेह नहीं करना (४) मोह रहित दृष्टि-धर्महीन मिथ्यावादी के बाह्याडम्बर को देख कर सत्य मार्ग से पतित नहीं होना (५) उपबृहणसमकितवन्त आत्मा के अल्पगुण की भी प्रशंसा करना और वचन द्वारा प्रोत्साहित करना (६) स्थिरकरण-धर्म रहित आत्मा को धर्म में लगाना और धर्मी आत्मा कारणवशात् पतित होता हो तो उनको स्थिर करना (७) वात्सल्यता-स्वधर्मी भ्राता के हित की ओर ध्यान देना (८) प्रभावक-ऐसे कार्य करना कि जिन को देख कर लोग श्रद्धा Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003175
Book TitleShravak Dharma Anuvrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, C005, M000, & M020
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy