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________________ श्रावक धर्म - अणुव्रत फिर उसको निज की आबरू घर घराणे का ध्यान नहीं रहता और जहां तक चेष्टाएँ पूरी न हो जांय उद्वेग बढ़ता है और भोगांध की मनोकामना सिद्ध न हो तो उसको मृत्यु जैसा अनुभव होने लगता है । सुयगडांग सूत्र के बारहवां उद्देषे में कहा है कि, जो मनुष्य विषय वासना में आसक्त रहता है, और विषय वासना अतिमात्रा में है तो वह मनुष्य संसार में कई बार भव भ्रमण करेगा, और सुयगडांग सूत्र के नौवां उद्देषे में स्पष्ट कहा है कि काम वासना भव भ्रमण करने वाली होती है। उत्तराध्ययन सूत्र के चौदवें उद्देषे में कहा है कि विषय विकार नर्थ की खान है । उत्तराध्ययन सूत्र के अठारहवा उद्देषे में कहा है कि मन की अस्थिरता अव्यवस्था और चित्त की विषयासक्ति आत्मा के अनंत बल को नष्ट करने वाली होती है । और उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवां उद्देषे में कहा है कि जो जीव भोग वासना में तीव्र आसक्ति रखता हो वह पुरुष काल में हो मृत्यु पाता है । इस प्रकार से बहुत से प्रमाण शास्त्रों में मिलते हैं, मनुष्य को चाहिए कि इस व्रत को अवश्य अङ्गीकार करे । पांचवां स्थूल परिग्रहपरिमाण व्रत -- इस व्रत के २१ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003175
Book TitleShravak Dharma Anuvrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, C005, M000, & M020
File Size3 MB
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