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७८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन वैशेषिकदर्शन काल को परोक्ष मानता है तो मीमांसक दर्शन काल को प्रत्यक्ष मानता है। इस तरह वैशेषिक, न्याय, पूर्वमीमांसा काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानते हैं। सांख्यदर्शन ने प्रकृति और पुरुष को ही मूल तत्त्व माना है और आकाश, दिशा, मन आदि को प्रकृति का विकार माना है।२३९ सांख्यदर्शन में काल नामक कोई स्वतन्त्र तत्त्व नहीं है पर एक प्राकृतिक परिणमन है। प्रकृति नित्य होने पर भी परिणमनशील है, यह स्थूल और सूक्ष्म जड़ प्रकृति का ही विकार है। . योगदर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में कहीं भी काल तत्त्व के सम्बन्ध में सूचन नहीं किया है। पर योगदर्शन के भाष्यकार व्यास ने तृतीय पाद के बावनवे सूत्र पर भाष्य करते हुए काल तत्त्व का स्पष्ट उल्लेख किया है। वे लिखते हैं-मुहूर्त, प्रहर, दिवस आदि लौकिक कालव्यवहार बुद्धिकृत और काल्पनिक हैं। कल्पना से बद्धिकृत छोटे और बड़े विभाग किये जाते हैं। वे सभी क्षण पर अवलंबित हैं। क्षण ही वास्तविक है परन्तु मूल तत्त्व के रूप में नहीं है। किसी भी मूल तत्त्व के परिणाम रूप में वह सत्य है। जिस परिणाम का बुद्धि से विभाग न हो सके वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म परिणाम क्षण है। उस क्षण का स्वरूप स्पष्ट करते हुए बताया है कि एक परमाणु को अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरा क्षेत्र प्राप्त करने में जितना समय व्यतीत होता है उसे क्षण कहते हैं। यह क्रिया के अविभाज्य
अंश का संकेत है। योगदर्शन में सांख्यदर्शन सम्मत जड़ प्रकृति तत्त्व को ही क्रियाशील माना है। उसकी क्रियाशीलता स्वाभाविक है, अतः उसे क्रिया करने में अन्य तत्त्व की अपेक्षा नहीं है। उससे योगदर्शन और सांख्यदर्शन क्रिया के निमित्त कारण रूप में वैशेषिकदर्शन के समान काल तत्त्व को प्रकृति से भिन्न या स्वतन्त्र नहीं मानता ।२४०
उत्तरमीमांसादर्शन वेदान्तदर्शन और औपनिषदिक दर्शन के नाम से विश्रुत है। इस दर्शन के प्रणेता बादरायण ने कहीं भी अपने ग्रन्थ में कालतत्त्व के सम्बन्ध में वर्णन नहीं किया है, किन्तु प्रस्तुत दर्शन के समर्थ भाष्यकार आचार्य शंकर ने मात्र ब्रह्म को ही मूल और स्वतन्त्र तत्त्व स्वीकार किया है-ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या।' इस सिद्धान्त के अनुसार तो आकाश, परमाणु आदि किसी भी तत्त्व को स्वतन्त्र स्थान नहीं दिया गया है। यह स्मरण रखना चाहिये कि वेदान्तदर्शन के अन्य व्याख्याकार रामानुज, निम्बार्क, मध्व और वल्लभ आदि कितने ही मुख्य विषयों में आचार्य शंकर
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