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४२ भगवती सूत्र : एक परिशीलन द्रत गति से भूमि पर दौड़ रहा है। टेलीफोन, टेलीविजन, रेडियो आदि के आविष्कार से विश्व सिमट गया है। अणु बम, न्यूट्रोन बम और विविध प्रकार की गैसों के आविष्कार से विश्व को विज्ञान ने विनाश की भूमिका पर भी पहुँचा दिया है। पर अतीत काल में भौतिक अनुसन्धान का अभाव था। उस समय आध्यात्मिक साधना के द्वारा उन साधकों ने वह अपूर्व शक्ति अर्जित की थी जिससे वे किसी के अन्तर्मानस के विचारों को जान सकते थे, विविध रूपों का सृजन कर सकते थे। जंघाचारण, विद्याचारण लब्धियों से अनन्त आकाश को कुछ ही क्षणों में नाप लेते थे। भगवतीसूत्र में इस प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियों को उजागर करने वाले अनेक प्रसंग आये
हैं।
भगवतीसूत्र शतक ३, उद्देशक ५ में एक प्रसंग है-गणधर गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा कि एक श्रमण विराट्काय स्त्री का रूप बना सकता है ? यदि बना सकता है तो कितनी स्त्रियों का रूप बना सकता है?
भगवान् ने कहा-वैक्रियलब्धिधारी श्रमण में इतना अधिक सामर्थ्य है कि वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को स्त्रियों के रूपों से भर सकता है, पर निर्माण करने की शक्ति होने पर भी वह इस प्रकार का निर्माण नहीं करता।
भगवतीसूत्र शतक ३, उद्देशक ४ में गौतम ने पूछा-वैक्रियशक्ति का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है या अप्रमत्त श्रमण करता है ?
भगवान् महावीर ने कहा-वैक्रियलब्धि का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है, अप्रमत्त श्रमण नहीं करता।
शतक ७, उद्देशक ९ में यह भी बताया है कि प्रमत्त श्रमण ही विविध प्रकार के विविध रंग के रूप बना सकता है। वह चाहे जिस रूप में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में परिवर्तन कर सकता है। ___भगवतीसूत्र शतक २०, उद्देशक ९ में गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् ने कहा-आकाश में गमन करने की शक्ति चारणलब्धि में रही हुई है। वह चारणलब्धि जंघाचारण और विद्याचारण के रूप में दो प्रकार की है। विद्याचारणलब्धि निरन्तर बेले की तपस्या से और पूर्व नामक विद्या से प्राप्त होती है। इस लब्धि से मुनि तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन परिधि वाले जम्बूद्वीप की तीन बार प्रदक्षिणा कर लेता है। जंघाचारणलब्धि तीन-तीन उपवास की निरन्तर
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