SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन विश्व वाङ्मय में अध्यात्मवादी साहित्य का स्थान सर्वोपरि है और अध्यात्मवादी वाङ्मय में आगम साहित्य का स्थान विशिष्ट है। आगम साहित्य में अंग सूत्रों का अपना गौरव है, और अंग सूत्रों में भगवती सूत्र की एक अद्भुत अनोखी गरिमा महिमा है। पंचम अंग, भगवती सूत्र जैन तत्त्वविद्या का विशिष्ट ज्ञान-कोश है। इसमें विभिन्न विचित्र विषयों का इतना सरस, सरल और रोचक वर्णन है कि पाठक पढ़ते-पढ़ते तत्त्वज्ञान की अभिनव मणियाँ प्राप्त करता है तो कभी-कभी आत्म-विज्ञान का मधुर रसास्वाद अनुभव करता है। कभी जीवन से सम्बन्धित आचार एवं नीति की विधाएँ मिलती हैं, तो कभी ज्ञान- गंभीर रोचक घटना प्रसंगों से मन मस्तिष्क प्रफुल्लित हो उठते हैं। भगवती सूत्र ज्ञान का महासागर ना गया है, इसमें गोता लगाना सामान्य व्यक्ति के बूते की बात नहीं है और फिर गोताखोरी में मूल्यवान मणियाँ प्राप्त कर पाना तो वैसे विरले ही ज्ञानी के वश का कार्य है। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी आगम ज्ञान-सागर के एक सफल और यशस्वी गोताखोर है। इस ज्ञान-सागर में इनकी गहरी पैठ तो है ही, वे जब भी डुबकी लगाते हैं तो कुछ नई मूल्यवान ज्ञान-मणियाँ प्राप्त करके ही लाते हैं। इन ज्ञान-मणियों को शब्दों के स्वर्ण में जड़कर पुस्तकों के आभूषण बनाकर प्रस्तुत करने में आपकी प्रस्तुतीकरण कला भी अद्भुत है, मन मोहक है। आपश्री ने 32 सूत्रों में से लगभग 28 सूत्रों पर समग्रतायुक्त विस्तृत शोध प्रधान प्रस्तावनाएँ लिखी हैं। आपत्री की प्रस्तावनाएँ आगम का दर्पण है, जिसे पढ़ने से सम्पूर्ण आगम की विषय वस्तु का विशद विज्ञान प्राप्त होता है। इन प्रस्तावनाओं के परिष्कृत एवं परिवर्द्धित रूप में सर्वप्रथम भगवती सूत्र : एक परिशीलन प्रस्तुत है। सम्पूर्ण भगवती सूत्र का दोहन, मन्थन किया हुआ नवनीत इस पुस्तक में प्राप्त होगा। प्रकाशक :- श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर -313 001 मुद्रक :- दिवाकर प्रकाशन, आगरा - 282002
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy