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१२. भगवती सूत्र : एक परिशीलन __ वेदों में योग और ध्यान की भी प्रक्रिया नहीं है। ऋग्वेद में योग शब्द मिलता है। वहाँ पर योग शब्द का अर्थ जोड़ना मात्र है । पर आगे चलकर वही योग शब्द उपनिषदों में पूर्ण रूप से आध्यात्मिक अर्थ में आया है।३ कितने ही उपनिषदों में तो योग और योगसाधना का सविस्तृत वर्णन किया गया है। योग, योगोचित स्थान, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, कुण्डलिनी आदि का विशद वर्णन है। सिन्धुसंस्कृति के भग्नावशेषों में ध्यानमुद्रा के प्रतीक प्राप्त हुए हैं, जिससे भी इस कथन को बल प्राप्त होता है। संक्षेप में यही सार है कि जैन आगमों का मूल स्रोत वेद नहीं है। वेदों से उसने सामग्री ग्रहण नहीं की है। उसकी सामग्री का मूल स्रोत तीर्थंकर हैं। केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन समुत्पन्न होने पर सभी जीवों के रक्षा रूप दया के लिए तीर्थंकर पावन प्रवचन करते हैं और वह प्रवचन ही आगम है। इस प्रवचन का स्रोत केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन हैं। इस तरह अंग आगम श्रमणसंस्कृति के प्रतिनिधि तथा आधारभूत ग्रन्थ हैं।
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