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२४४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
एक राजु विस्तृत और १४ राजू लम्बी जो त्रस नाड़ी कल्पित की गयी है, उससे बाहर ये नहीं रहते, न ही जा सकते हैं।
ज्ञान- जो जानता है, जिसके द्वारा जाना जाता है अथवा जानना मात्र ज्ञान है। ज्ञान जीव का विशेष गुण है जो स्व-पर दोनों को जानने में समर्थ है। ज्ञान स्वभावतः सम्यक् या मिथ्या नहीं होता परन्तु सम्यक्त्व या मिथ्यात्व के संसर्ग से उसमें सम्यक्पन या मिथ्यापन आ जाता है। ज्ञान पांच प्रकार का है मंति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यव और केवल । पूर्व के तीन ज्ञान सम्यग्दृष्टि के सम्यक्ज्ञान और मिथ्यादृष्टि के मिथ्याज्ञान कहलाते हैं। अतिम के दो ज्ञान सम्यग्दृष्टि को ही होते हैं ।
ज्ञानावरण कर्म- जीव के ज्ञान को आवृत करने वाला कर्म । जितने प्रकार का ज्ञान है उतने ही प्रकार का ज्ञानावरणीय कर्म है।
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