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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २३३ होते हैं, वह परघात नामकर्म है जैसे-सांप की दाढ़ों में विष, बिच्छू की पूंछ में। परदुःख के कारणभूत पुद्गलों का संचय, सिंह, व्याघ्र आदि में तीक्ष्ण नख और दन्त तथा धतूरा आदि विषैले वृक्ष परदुःख उत्पन्न करने वाले हैं।
परमाणु-पुद्गल द्रव्य के छोटे से छोटे अविभाज्य अंश को परमाणु कहते हैं, जो स्कन्ध से पृथक् और तीक्ष्ण शस्त्रों से भी छेदा-भेदा न जा सके, जल व अग्नि के द्वारा नाश को प्राप्त न हो। यह चतुःस्पर्शी है। वह निरवयव है, आदि मध्य और अन्त से रहित होता है।
परलोक-व्यवहार नय से अन्य भव में जीव के गमन को परलोक कहते हैं। अथवा पर अर्थात् उत्कृष्ट चिदानन्द शुद्ध स्वभाव आत्मा, उसका लोक- . अवलोकन निश्चय दृष्टि से परलोक है।
परस्पराश्रय दोष-परस्पर में एक-दूसरे के ऊपर आश्रित रहना। जैसेखटके के ताले की चाबी अलमारी में रह गयी और बाहर से ताला बन्द हो गया। तब चाबी निकले तो ताला खुले और ताला खुले तो चाबी निकले। अथवा सर्वज्ञता सिद्ध हो तो आगम की सिद्धि हो और आगम सिद्ध हो तो सर्वज्ञता सिद्ध हो।
परिग्रह-मूर्छा भाव परिग्रह है। अथवा बाह्य पदार्थ के ग्रहण में कारणभूत परिणाम परिग्रह है। अथवा "यह मेरा है" इस प्रकार का संकल्प ही परिग्रह है। __ परिणाम-अध्यवसाय विशेष का नाम परिणाम है। अथवा द्रव्य का अपनी द्रव्यत्व जाति को नहीं छोड़ते हुए जो स्वाभाविक या प्रायोगिक परिवर्तन होता है, उसे परिणाम कहते हैं। __ परीषह-मार्ग से च्युत न होने के लिए और कर्मों की निर्जरा के लिये जो सहन करने योग्य हों, वे परीषह हैं। अथवा दुःख आने पर भी संक्लेश परिणामों का न होना, परीषहजय है। परीषह के २२ भेद हैं।
परोक्ष-अस्पष्ट ज्ञान को परोक्ष कहते हैं। अथवा आत्मा से पर-इन्द्रिय, मन आदि के निमित्त से जो पदार्थ का ज्ञान होता है वह परोक्ष है।
पर्याय-जो स्वभाव विभाव रूप से गमन्न करती है-पर्येति अर्थात् परिणमन करती है, वह पर्याय है। पर्याय का वास्तविक अर्थ वस्तु का अंश है। अन्वयी और व्यतिरेकी भेद से पर्याय दो प्रकार की है। अन्वयी को गुण
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