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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २२३ आतप नामकर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर में आतप की प्राप्ति हो । आत्मा - दर्शन, ज्ञान, चारित्र को जो सदा प्राप्त हो । अथवा शुद्ध चैतन्य लक्षण का धारक आत्मा है। अथवा " अत्" धातु निरन्तर गमन करने रूप अर्थ में है और सब गमनार्थक धातु ज्ञानार्थक भी होती है। इस वचन से जो यथासंभव ज्ञान, सुखादि गुणों में सर्व प्रकार वर्तता है, वह आत्मा है। • आदेयनाम - अनादेयनाम - जिस कर्म के उदय से जीव जो भी व्यवहार करता है उसे लोग प्रामाणिक मानते हैं, वह आदेयनाम तथा जिसके उदय से अच्छा काम करने पर भी जीव गौरव को प्राप्त न हो, वह अनादेय बाम है । आनुपूर्वीनाम- जो जीव विवक्षित गति में उत्पन्न होने वाला है और अभी विग्रहगति में वर्तमान है वह जिस कर्म के उदय से आकाश प्रदेश की पंक्ति के अनुसार जाकर अभीष्ट स्थान को प्राप्त हो । कितने ही आचार्य कहते हैं कि जो कर्म निर्माण नाम के द्वारा निर्मित शरीर के अंग उपांगों की रचना-विशेष का नियामक होता है, वह आनुपूर्वी नामकर्म है। आप्त- जिसके राग, द्वेष व मोह का सर्वथा नाश हो गया है अथवा जो प्रत्यक्ष ज्ञान से समस्त पदार्थों का ज्ञाता है और परम हितोपदेशी है, वह आप्त है। आयुकर्म - जीव की किसी विवक्षित शरीर में टिके रहने की अवधि का नाम आयु है। इस आयु का निमित्त कर्म आयुकर्म है। आरम्भ - प्राणियों को दुःख पहुंचाने वाली प्रवृत्ति । आर्य - जो गुणों या गुणीजनों द्वारा मान्य हों अथवा हेय धर्म से उपादेय धर्म को जो प्राप्त हों । आवली- असंख्यात समय समूह की एक आवली होती है। आनव-जीव के द्वारा प्रति समय मन वचन और काया से जो शुभ या अशुभ प्रवृत्ति होती है, वह भावास्रव है। तत्निमित्तक विशेष प्रकार की पुद्गल वर्गणाएं आकर्षित होकर आत्म-प्रदेशों में प्रवेश करती हैं, वह द्रव्यासव है। आहारक शरीर - सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने के लिये या संशय को दूर करने के लिये प्रमत्तसंयत मुनि जिस शरीर की रचना करता है, वह शरीर । यह एक हाथ ऊंचा व हंस के समान धवल वर्णवाला व सर्वांग- सुन्दर और कई लाख योजन तक अप्रतिहत गमन करने में समर्थ है। और उत्तमांग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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