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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २११ गंध, रस आदि को जानने का कारण है, अन्तरहित तथा शाश्वत व अप्रतिपाती है ऐसा यह केवलज्ञान एक प्रकार का ही है।
(क) भग. शतक ८, उ. २, सू. १७
(ख) नन्दीसूत्र का सारांश केवलज्ञान ___ गौतम ने पूछा-भगवन् ! केवली इन्द्रिय और मन से जानता और देखता
भगवान-गौतम ! वह इन्द्रियों से नहीं जानता है और नहीं देखता है। गौतम-भगवन् ! ऐसा किस अपेक्षा से है?
भगवान गौतम ! केवली पूर्व-दिशा में मित को भी जानता है अमित को भी जानता है जो इन्द्रियों का विषय नहीं है। केवलज्ञान में इन्द्रिय और मन की अपेक्षा नहीं होती।
-भगवती ६/१0, सूत्र १२-१३ . ज्ञान दर्शन युगपत् नहीं
गौतम ने पूछा-भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य परमाणु को जानता है पर देखता नहीं, यह सत्य है? अथवा जानता भी नहीं, देखता भी नहीं यह सत्य
__ भगवान ने कहा-गौतम ! कई छद्मस्थ विशिष्ट श्रुत-ज्ञान से परमाणु को जानते हैं पर दर्शन के अभाव में वे देख नहीं सकते और कई जो सामान्य श्रुतज्ञानी होते हैं वे न तो जानते हैं और न देखते हैं।
गौतम-परम अवधिज्ञानी परमाणु को जिस समय जानते हैं उस समय देखते हैं और जिस समय देखते हैं, उस समय जानते हैं ?
भगवान महावीर-गौतम ! वे जिस समय परमाणु को जानते हैं उस समय देखते नहीं और जिस समय देखते हैं उस समय जानते नहीं।
गौतम-भगवन् ! ऐसा किस प्रकार है?
भगवान गौतम ! ज्ञान साकार है और दर्शन अनाकार है इसलिए दोनों एक साथ नहीं हो सकते।
-भगवती १८/८, सूत्र ७
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