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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २०९ गुरुदेव ने कहा-आर्य ! श्रुतज्ञान चौदह प्रकार का है
अक्षरश्रुत, अनक्षरश्रुत, संज्ञीश्रुत, असंज्ञीश्रुत, सम्यक्श्रुत, मिथ्याश्रुत, सादिश्रुत, अनादिश्रुत, सपर्यवसितश्रुत, अपर्यवसितश्रुत, गमिकश्रुत, अगमिकश्रुत, अंगप्रविष्टश्रुत और अंगबाह्यश्रुत ।२२ शिष्य ने प्रश्न किया-भन्ते ! अवधिज्ञान प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
गुरुदेव ने कहा-आर्य ! अवधिज्ञान भवप्रत्यय-भव जिसके क्षयोपशम में प्रधान कारण है, और क्षायोपशमिक-अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होने वाला, इस तरह दो प्रकार का है।
भवप्रत्यय अवधिज्ञान देवों और नारकीयों को होता है। क्षायोपमिक अवधिज्ञान मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रियों को होता है।
अथवा गुणप्रतिपन्न अनगार को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है, वह छह प्रकार से होता है
आनुगामिक-सूर्य और आतप के समान जो ज्ञान अपने उत्पत्तिस्थान से, ज्ञानी के अन्यत्र जाने पर भी नेत्र के समान साथ रहता है। ____ अनानुगामिक-साथ में नहीं जाने वाला ज्ञान अर्थात् शृंखलाबद्ध दीपक के समान जहाँ उत्पन्न होता है वहीं रहने वाला।
वर्धमानक-अध्यवसायों की विशुद्धि से ईंधन डालने पर अग्नि की तरह सतत बढ़ने वाला ज्ञान। __ हीयमानक-संक्लिष्ट परिणाम आ जाने से बिना ईंधन की अग्निवत् निरन्तर हीन, हीनतर, हीनतम होने वाला। __ प्रतिपातिक-बुझते हुए दीपक के समान जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद एकदम नष्ट हो जाता है। ___ अप्रतिपातिक-जो अवधिज्ञान केवलज्ञान होने से पहले नहीं जाता, उसे अप्रतिपाति अवधिज्ञान कहते हैं। . द्रव्य से अवधिज्ञानी जघन्य अनन्त रूपी द्रव्यों को जानता और देखता, उत्कृष्ट सब रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है।
क्षेत्र से अवधिज्ञानी जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्र में स्थित रूपी द्रव्यों को जानता व देखता है, उत्कृष्ट अलोक में लोक परिमित असंख्य खण्डों को जानता व देखता है |२२
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