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ज्ञान और उपयोग विषयक चर्चाएँ
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ज्ञान मीमांसा १. ज्ञान और उपयोग विषयक चर्चाएँ २. अनेकान्तवाद सम्बन्धी चर्चाएँ ३. भाषा विषयक चर्चाएँ • ज्ञान और उसके पाँच प्रकार
केवलज्ञान • ज्ञानदर्शन युगपत् नहीं
ज्ञान और उसके पाँच प्रकार जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप समझा जाय अथवा जिससे समझा जाय या जिसमें समझा जाय, वह ज्ञान१५ है। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय अथवा क्षयोपशम से उत्पन्न आत्मा के तत्त्व बोध को ज्ञान कहते हैं।
शिष्य ने प्रश्न किया-भन्ते ! ज्ञान कितने प्रकार का है ?'
गुरुदेव ने कहा-आर्य ! ज्ञान पाँच प्रकार से प्रतिपादन किया हैआभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान।
(क) आभिनिबोधिक ज्ञान-सम्मुख आए हुए पदार्थों के प्रतिनियत स्वरूप का बोध जिससे हो वह आभिनिबोधिक ज्ञान है। यह ज्ञान पाँच इन्द्रिय और मन से उत्पन्न होता है।
(ख) श्रुतज्ञान-“श्रूयते इति श्रुतम्" अर्थात् शब्दानुसारी ज्ञान श्रुतज्ञान है। यह ज्ञान भी इन्द्रियों और मन से होता है तथापि इस ज्ञान में इन्द्रियों की अपेक्षा मन की मुख्यता है। “श्रुतमनिन्द्रियस्य"१६
(ग) अवधिज्ञान-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की मर्यादा के अनुसार जो ज्ञान द्रव्यों को प्रत्यक्ष जानने की शक्ति रखता है, उसे अवधिज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान आत्मा से सम्बन्धित है, इन्द्रियों और मन की अपेक्षा नहीं रखता।
(घ) मनःपर्यवज्ञान-जो ज्ञान मन की पर्यायों को प्रत्यक्ष जानने की शक्ति रखता है वह मनःपर्यवज्ञान है। यह भी अतीन्द्रिय ज्ञान है।
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