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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ७ प्रवचन के भी शब्द और अर्थ- ये दो रूप हैं। शब्द, सूत्र के नाम से जाना जाता है और उस सूत्र के रचयिता हैं-गणधर। जिस अर्थ के आधार पर गणधरों ने सूत्र की रचना की; उस अर्थ के प्ररूपक हैं- तीर्थंकर ।१७ यहाँ पर भी एक प्रश्न समुत्पन्न होता है कि तीर्थंकरों ने अर्थ का उपदेश दियाक्या वह अर्थ का उपदेश बिना शब्द का था? बिना शब्द के उपदेश देना सम्भव ही नहीं है, तो शब्दों के रचयिता गणधर क्यों माने जाते हैं ? तीर्थंकर क्यों नहीं ? इस प्रश्न का समाधान जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने इस प्रकार किया हैतीर्थंकर भगवान् अनुक्रम से बारह अंगों का यथावत् उपदेश प्रदान नहीं करते किन्तु संक्षेप में सिद्धान्त उपदेश देते हैं। उस संक्षिप्त उपदेश को गणधर अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से बारह अंगों में इस प्रकार संग्रथित करते हैं, जिससे सभी सरलता से समझ सकें। इस प्रकार अर्थ के कर्ता तीर्थंकर हैं और सूत्र के कर्ता गणधर हैं। संक्षेप में तीर्थंकरों का उपदेश किस प्रकार होता है इस प्रश्न पर विचार करते हुए लिखा है-'उप्पन्ने इ वा, विगमे इ वा, धुवे इ वा'। इस मातृकापदत्रय का ही उपदेश तीर्थंकर प्रदान करते हैं और उसी का विस्तार गणधर द्वादशांगी के रूप में करते हैं।८ सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम,९ आप्तवचन, ऐतिह्य, आम्नाय, जिनवचन२० और श्रुत, ये सभी आगम के ही पर्यायवाची शब्द हैं। अतीत काल में 'श्रुत' शब्द का प्रयोग आगम के अर्थ में अधिक होता था। 'श्रुतकेवली', 'श्रुतस्थविर'२२ शब्द का प्रयोग आगमों में अनेक स्थलों पर निहारा जा सकता है पर कहीं पर भी 'आगमकेवली' या 'आगमस्थविर' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। अंग आगमों का मौलिक चिन्तन : परमाणु विज्ञान ___ आगमों का मौलिक विभाग अंग है। उसमें जहाँ पर धर्म और दर्शन की गम्भीर चर्चाएं हैं, आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध में गहरा विवेचन है, वहाँ अणु के सम्बन्ध में भी तलस्पर्शी वर्णन है। आज के वैज्ञानिक अणु के सम्बन्ध में अन्वेषण करने में जुटे हुए हैं, किन्तु अणु के सम्बन्ध में जिस सूक्ष्मता से चिन्तन श्रमण भगवान् महावीर ने किया है, उतनी सूक्ष्मता से आधुनिक वैज्ञानिक नहीं कर सके हैं। आज का वैज्ञानिक जिसे अणु कहता है; महावीर उसे स्कन्ध कहते हैं। महावीर की दृष्टि से अणु बहुत ही सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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