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१८८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
इन बारह प्रकार के बालमरण से मरने वाला जीव जन्म-मरण की परम्परा को बढ़ाता है।
स्कन्दक-भन्ते ! पण्डितमरण किसे कहते हैं, और वह कितने प्रकार है?
महावीर-आर्य ! पंडितमरण दो प्रकार का है-पादपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान। पुनः ये मरणद्वय निर्हारिम और अनिर्हारिम के भेद से दो दो प्रकार के हैं।
जो श्रमण उपाश्रय में पादपोपगमन या भक्तप्रत्याख्यान प्रारम्भ करते हैं, पण्डित मरण के पश्चात् उनका शव उपाश्रय व नगर से बाहर ले जाकर संस्कारित किया जाता है, एतदर्थ वह मरण निर्हारिम कहा जाता है। और जो श्रमण अरण्य में पादपोपगमन था भक्तप्रत्याख्यान द्वारा देहत्याग करते हैं, उनका शव संस्कार के लिये कहीं बाहर नहीं ले जाया जाता, इसलिये वह मरण अनिर्हारिम कहा जाता है। पादपोपगमन चाहे निर्झरिम हो या अनिर्दारिम, अप्रतिकर्म होता है, उस मरण में वैयावृत्य नहीं होती। भक्त प्रत्याख्यान निर्हारिम हो या अनिर्दारिम, उसमें वैयावृत्य निषिद्ध नहीं है। इस प्रकार पण्डितमरण से मरने वाला जीव संसार को घटाता है। दुर्गतिरूप संसार में अधिक समय परिभ्रमण नहीं करता।
भगवान से योग्य समाधान पाकर स्कन्दक के अन्तर्-चक्षु उद्घाटित हो गये। उसने महावीर के पास दीक्षा अंगीकार कर जैन-दृष्टि का परम रहस्य प्राप्त किया।१४
-भग. शतक २, उ. १, परिव्राजक कालोदायी और महावीर भगवान महावीर राजगृह के गुणशीलक चैत्य में विराजमान थे। चैत्य के आस-पास अनेक अन्यतीर्थिक परिव्राजक रहते थे। एक दिन कालोदायी, शैलोदायी आदि कुछ परिव्राजक पंचास्तिकाय के सम्बन्ध में वार्तालाप कर रहे थे। वे बोले-"श्रमण महावीर पंच अस्तिकायों का निरूपण करते हैंधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय। इनमें प्रथम चार अस्तिकायों को वे अजीव बतलाते हैं और पंचम अस्तिकाय को जीव। चार अस्तिकायों को वे अमूर्त बतलाते है और पुद्गलास्तिकाय को मूर्त। यह अस्तिकाय का सिद्धान्त कैसे मान्य किया जा सकता है?"
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